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________________ २७. उष्कृष्ट अनंत प्रदेशियो, ते आकाश प्रदेश | असंख्यात अवगाढ छै, त्र्यंस युग्म घन एस || चतुरख संस्थान के प्रदेश और आकाश-प्रदेश हि चउरंस नां ओज युग्म बे भेद कहै छै - २८. प्रभु ! चउरंस संठाण ते किता आकाश प्रदेश नं २९. श्रीजिन भाखे चउरंस ते किता प्रदेश नों पेख । अवगाह्यो विशेष ? द्विविध वट्ट जिम भेद । घन अनें प्रतर बलि, ज्यूं करिवा संवेद || हिव चउरंस प्रतर ओज प्रदेश कहै छे ३०. जाव ओज- प्रदेशिक तिहां, ते जघन्य थकी कहिवाह । नवप्रदेशिक बंध ते, नव प्रदेश ओगाह ॥ ओज प्रदेश प्रतर चतुरस्र नव प्रदेश नीं स्थापना १ ३३. उत्कृष्ट अनंत १ १ २६ भगवती जोड़ १ Jain Education International १ १ २१. उत्कृष्ट अनंत प्रदेशियों ते आकाश प्रदेश | असंख्यात अवगाढ छे, ओज प्रतर को एस ।। हिप्रतर प्रदेशिक क १ ३२. युग्मप्रदेशिक जे तिहां, जघन्य च्यारप्रदेशिक बंध ए, च्यार युग्म प्रदेश प्रतर ४ प्रवेश नों स्थापना १ १ १ १ १ प्रदेशियो, ते आकाश प्रदेश | । असंख्यात अवगाढ छै, युग्म प्रतर को एस ।। हि पन चडरंस कई छे ३४. तिहां पन चउरंस अछे तिको, वे भेद अवगम । जोज विषम प्रदेशिके, युग्म प्रदेशक सम || १ थकी प्रदेश कहिवाह | ओगाह || हि चउरंस ओज प्रदेशिक कहे छै- ३५. घन वउरंस ओज प्रदेशिको, जघन्य थकी कहिवाह । सत्तावीस प्रदेश नौ, सप्तवीस अवगाह || २७. उक्कोसेणं अणतपदेसिए असंखेज्जपदेसोगाढे । २८. उभ! संठाणे रुतिपदेसिए - पुच्छा। २९. गोयमा ! चउरंसे संठाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहाघणचउरंसे य, पतरचउरंसे य । ३०. जाव (सं. पा.) तत्थ णं जे से ओयपदेसिए से जहणेणं नवपदेसिए नवपदेसोगाढे, (२५०५२) ३१. उक्को सेणं पण्णत्ते ।. अतपदेखिए For Private & Personal Use Only असंखेज्जपदेसोगाढे ३२. तत्थ गं जे से जुम्मपदेसिए से जहणेन चउपदेखिए चउपदेसोगाढे पण्णत्ते, ३३. उक्कोसेणं अणतपदेसिए असंखेज्जपदेसोगाढे । ३४. तत्थ णं जे से घणचउरसे से दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - ओमपदेखिए म जुम्मपदेसिए । ३५. तत्थ णं जे से ओयपदेसिए से जहणणेणं सत्तावीसइपदेसिए सत्तावीस पदेसोगाडे. www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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