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कलश - छंद
१. जसु वाणि दीपशिखा समो
चित भ्रान्ति ध्वान्त निवारणी, गंभीर गृह सम ग्रन्थ अर्थ विषे प्रकाश विशारणी । फुन बुद्धि बल करि देव गुरु प्रतिभा प्रभा दूरी हरी, हवा जु सुगुरु प्रताप थी वर जोड़ रचना शुभ करी ॥
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१. यद्गीर्दीपशिखेव खण्डिततमा गम्भीरगेहोपम
ग्रन्थार्थप्रचयप्रकाशनपरा सद्दृष्टिमोदावहा । तेषां ज्ञप्तिनिनिजितामरुप्रज्ञाथिया श्रेयस, सूरीणामनुभावतः शतमिद व्याख्यातमेवं मया ॥ १ ॥ (वृ. प. ९५४)
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श० ३४, डा० ४९०
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