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________________ एकत्रिंशत्तम शतक ढाल : ४८० १,२ त्रिंशत्तमशते चत्वारि समवसरणान्युक्तानीति चतुष्टयसाधाच्चतुर्युग्मवक्तव्यतानुगतमष्टाविंशत्युद्देशकयुक्तमेकत्रिशं शतं व्याख्यायते, (व. प. ९४८) १. शतक तीसमा में कह्या, समवसरण ए च्यार । चिहं संख्या साधर्म्य थी, हिव चिहुं युग्म उदार ।। २. एकतीसमा शतक में, अष्टवीस उद्देश । आदि अर्थ कहिये हिवं, गोयम प्रश्न अशेष ।। क्षुल्लक युग्म के प्रकार ३. नगर राजगृह नै विषे, जाव वदै इम वाय । हे प्रभुजी ! कह्या केतला, क्षुल्लक युग्म जग माय? ४. क्षुल्लक युग्म ते राशि नां, विशेष कहिस्यै एह । महायुग्म पिण तेह छै, तिणसूं क्षुल्लक कहेह ।। ३. रायगिहे जाव एवं वयासी-कति णं भंते ! खडा जुम्मा पण्णत्ता ? ४. खुड्डा जुम्म' त्ति युग्मानि-वक्ष्यमाणा राशिविशेषास्ते च महान्तोऽपि सन्त्यतः क्षुल्लकशब्देन विशेषिताः, (वृ. प. ९५०) ५. गोयमा ! चत्तारि खुड्डा जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा कडजुम्मे, ६. तेयोए, दावरजुम्मे, कलियोगे। (श. ३१/१) ७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ–चत्तारि खुड्डा जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा--कडजुम्मे जाव कलियोगे? ८. गोयमा ! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागकडजुम्मे । ५. जिन भाखै सुण गोयमा ! क्षुल्लक युग्म जे च्यार । परूपिया कहियै तिके, धुर कृतयुग्म प्रकार ।। ६. तेओगे ते व्योज है, द्वापरयुग्म कहाय । कलियोगे कल्योज ए, युग्म च्यार इम थाय ।। ७. किण अर्थे प्रभु! एहवं, कहिये वचन सुसोझ। क्षुल्लक युग्म चिहुं भाखिया, कडजुम्म जाव कल्योज ।। ८.*जिन कहै जेह राशि प्रते, चिहं अपहारज करिक लेह । सुण गोयमा रे। अपहरतां रहै छेहडै च्यार, तेह क्षुल्लक कृतयुग्म प्रकार। सुण गोयमा रे॥ सोरठा ९. धूर जे च्यार विमास, अठ द्वादश इत्यादि जे। संख्यावानज राश, कहियै खुडाग कडजुम्मे ।। १०.*वलि जे राशि प्रतै पहिछाण, चिहुं अपहार करिने जाण । अपहरतां रहै छेहड़े तीन, तेह क्षल्लक तेयोग कथीन । ९. तत्र चत्वारोऽष्टो द्वादशेत्यादिसंख्यावान् राशि: क्षुल्लकः कृतयुग्मोऽभिधीयते, (व. प. ९५०) १०.जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागतेयोगे। सोरठा ११. धुर जे तीन विमास, सप्त ग्यारै इत्यादि जे। ___ संख्यावानज राश, कहियै क्षुल्लक तेयोग जे॥ *लय : खिण गई रे मेरी खिण गई ११. एवं त्रिसप्तकादशादिको क्षुल्लकत्र्योजः, (व. प. ९५०) श० ३१, उ०१, ढा० ४८० ३२९ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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