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________________ १९. च्यारूं संज्ञावंत जीवड़ा, चिहुं समवसरण नें विषेह | कहिया सलेशी नी पर जी, न्याय विचारी लेह ॥ वा०-च्यार संज्ञावंत क्रियावादी तो भव्य, शेष तीन समवसरण भव्य पिण अभव्य पिण जाणवा । २०. नोसण्णोवउत्ता जीवदा, इक क्रियावादी में विषेह । भवसिद्धियाज कहीजिये जी, समदृष्टि जिम एह ॥ २१. सवेदी जाव नपुंसका जी, सलेशी जिम लेख । क्रियावादी तो भव्य छै जी, भव्य अभव्य त्रिण शेख ॥। २२. अवेदगा जे जीवड़ा जी, समदृष्टि जिम ताहि । इक क्रियावादी नैं विषे जी, भव्य पिण अभव्य नांहि ।। २३. सकवाई जावत वली जी लोभकपाई जाण कहिया ससेशी नीं पर जी, न्याय हिया में आण || वा०-- सकषाई जाव लोभकषाई समवसरणे भव्य पिण अभव्य पिण कहिवा । क्रियावादी तो भव्य, शेष तीन २४. अकवाई जे जीवड़ा जी, समदृष्टि जिम कहिवाय । इक क्रियावादी नें विषे जी, भव्य पिण अभव्य नांय || २५. सजोगी ने यावत वली जो कायजोगी के जेह । न्याय पूर्ववत लेह ॥ क्रियावादी तो भव्य, शेष तीन समवसरणे कहिना सलेशी नीं पर जो वा. सजोगी जाव कायजोगी भव्य पिण अभव्य पिण कहिवा २६. अजोगी जे जीवड़ा जी, समदृष्टि जिम जाण । इक क्रियावादी विषे भव्य छे जी, ए चवदम गुणठाण ।। २७. साकारोवउत्ता में वली जी, अनाकार उपयुक्त । कहिवा सलेशी नीं परै जी, न्याय पूर्व जे उक्त ॥ वा० - साकारोवउत्ता अनाकारोवउत्ता क्रियावादी तो भव्य, समवसरणे भव्य पिण अभव्य पिण कहिवा । समवसरणगत २४ दंडकों में भव्यत्व - अभव्यत्व २८. कहिया इमहिज नारकी जी णवरं विशेषज जाण । कहिवूं जेहनें जे अछे, दश भवनपति इम माण | २९. पृथ्वी कायिक सहु स्थानके, बिचला समवसरण बे मांय । भवसिद्धिक पिण तिके जी, अभवसिद्धिक पिण थाय ॥ ३०. इम जाव वनस्पति लगै जी, बे. ते चउरिद्री मांय । एवं वेव कहीजिये जी, नवर विशेष कहाय ।। ३१. सम्यक्त्व समुच्चय ज्ञान में जी, मति श्रुत ज्ञान रे मांहि । बिचला बे समवसरण विषे जी, भव्य पिण अभव्य नांहि ॥ Jain Education International शेष तीन वा० - इहां विकलेंद्रिय समदृष्टि ज्ञानी ने सास्वादन सम्यक्त्व तो छे पिण मिथ्यात्व र सन्मुख छ । वमती सम्यक्त्व मार्ट क्रियावादी न कह्या । क्रियावादी तो विशिष्ट सम्यक्त्ववंत नैं हुवे । ३२२ भगवती जोड़ १९. सणासु चउसु वि जहा सलेस्सा। २०. नोसण्णोवउत्ता जहा सम्मदिट्ठी । २१. सवेदगा जाव नपुंसगवेदगा जहा सलेस्सा | २२. अवेदना जहा सम्मदिट्टी २३. सकसायी जाव लोभकसायी जहा सलेस्सा । For Private & Personal Use Only २४. अकसायी जहा सम्मदिट्ठी । २५. सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा | २६. अजोगी जहा सम्मदिट्ठी । २७. सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता जहा सलेस्सा । २९. २८. एवं नेरइया वि भाणियव्वा, नवरं - नायव्वं जं अस्थि । एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा । वि मन्किले दोगुन समोसरणे भवसिद्धीया वि, अभवडीया वि ३०. एवं जाव वणस्सइकाइया । बेइं दिय-तेइं दिय चरिदिया एवं चेव, नवरं३१. सम्मत्ते ओहिनाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणेएएसु चेव दोसु मज्झिमेसु समोसरणेसु भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया, सेसं तं चैव । www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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