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________________ ६४. वलि तेहनें समीपे सोय, तसु जीवित अंते जोय । ते पिन कोड़ पूर्व आयुक्त, परिहारविशुद्ध पड़िवजंत ।। ६५. इम बिहुं नों परिहारविशुद्ध, थया बे पुव्व कोड़ संशुद्ध । तेहथो आगल अद्धा गांव, परिहारविशुद्ध न थाय ।। ६६. इहां देश थकी ऊणों ताय, हिव कहिये तेहनों न्याय । धुर ऊणों जे गुणतीस वास, पडिहार पड़िवज्यो तास ॥ ६७. इम बीजो पिण विशुद्धपरिहार, वर्ष गुणतोस कणों सार । इतर दोय पूर्व कोड़ मांय, ऊणा वर्ष अठावन धाय ।। ६८. इम उत्कृष्ट थकी सुजोड़, देश ऊण दोय पुस्वको । बहुवचन सिद्धांत मकार, तिणसूं दोय संजत परिहार ॥ ६९. * पूछा सूक्ष्मसंपराय नीं सा० ! भाखे जिन वच श्रिष्ठ हो स० ! समय हुवे इक जघन्य थी गो० ! अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट हो स० ! वा० - बे आदि सम काले दशम गुणस्थान र समय रही मरण पामै ए जघन्य थी एक समय अनैं उत्कृष्ट तेहिज अंतमुहूर्त रहे ते माटै उत्कृष्ट अंतर्मुहुतं । ७०. बहु वचने यथारूपात ने गो० ! सदा काल हुवै शाश्वता गो० ! बहु वच सामायिक जेम हो स० ! संयत का अन्तर ७१. पणवीसम देश सप्तनुं साहिबजी ! चिसो गुणसठमी ढाल हो गुणगेही ! भिक्षु भारीमाल ऋषिराम की साहिबजी ! 'जय - जश' हरष विशाल हो गुणगेही ! विदेह केवलधर खेम हो स० ! ढाल ४६० Jain Education International दूहा १. इक व सामायिक तणों, जिन कहै इक वचने करी, अंतर हितो भदंत ? पुलाक नों जिम हुंत ॥ २. इम जावत इक वचन करि, अंतर्मुहूर्त जघन्य थी, ३. बहु वच सामायिक तणों, यथाख्यात नों मंत । उत्कृष्ट काल अनंत || अंतर कितो भदंत ? जिन भाखे अंतर नथी, सदा शाश्वता मंत ।। * लय: आई छं देवा ओलम्भड़ा सासूजी १९४ भगवती जोड़ ६४. तस्यान्ति तज्जीवितान्तेऽन्यस्तादृश एव तत्प्रतिपन्न ( वृ. प. ९१८ ) ६५. इत्येवं पूर्व कोटीद्वयं तथैव देशोनं परिहारविशुद्धिकसंयतत्वं स्यादिति । (बृ.प. ९१८) ६९. सुहुमसंपरागसंजया -पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुह ७०. अक्खायसंजया जहा सामाइयसंजया । १. सामाइयसंजयस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं जहा पुलागस्स । २. एवं जाव अहक्वायसंजयस्स । ३. सामाइयसंजयाणं भंते ! गोयमा ! 'नत्थि अंतरं' । For Private & Personal Use Only (प्र. २५/५३७) पुच्छा ! (म. २५/५३०) (२५५३९) www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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