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________________ १७, सेसा जहा नियंठे। (श. २५४८३) गोतक छंद १६. फुन विराधक आश्रित्य उपजै भवनपत्यादिक महीं । ___ चिहुं जाति में कोइक विषे, सम्यक्त्व चरण वमी सही ।। १७. *संपराय-सूक्ष्म चारित्रियो, यथाख्यात वलि जाणी । ए बिहं संजत शेष रह्या ते, निग्रंथ जेम पिछाणी ।। गीतकछंद १८. अविराधना आश्रित्य इंद्र, सामानिके त्रास्त्रिशके । नहिं ऊपज फुन लोकपाले, हुवै ए अहमिदके ।। १९. फुन विराधक उत्पत्ति भवनपत्यादिक सुर कोइक विषै । वर श्रेणि थी पड़ हुवै विराधक मोह कर्म तणे धकै ।। २०. *सामायिक संजत हे प्रमजी! ऊपजतो सुर लोगे । किता काल नी स्थिति कही तसु, ते सुर नी शुभ योगे? २१. श्री जिन भाखै जघन्य थकी ते, दोय पल्य नी स्थित । उत्कृष्टी तेतीस उदधि नी, अविराधक आश्रित ।। २२. कहिवू इम छेदोपस्थापनी, पूछ फुन परिहारं । श्री जिन भाख जघन्य दोय पल्य, उत्कृष्ट उदधि अठारं ।। लोकपालदिक सुर का धकै ।। २०. सामाइयसंजयस्स णं भंते ! देवलोगेसु उववज्ज माणस्स केवतियं कालं ठिती पण्णता? २१. गोयमा ! जहणणं दो पलिओवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। २२. एवं छेदोवढावणिए वि। (श. २५।४८४) परिहारविसुद्धियस्स ---पुच्छा। गोयमा ! जहणणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई, २३. सेसाणं जहा नियंठस्स । (श. २५।४८५) २३. दोय संजती शेष रह्या ते. निग्रंथ जेम निहाली । तेह अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थित, तेतीस सागर भाली ।। संयत के संयम-स्थान २४. सामायिक नैं प्रभु ! केतला, संजम स्थानक भाख्या ? श्री जिन भाखै असंख्यात ही, स्थान चरित्र नां दाख्या ।। २५. इम यावत परिहारविशुद्ध नां, प्रश्न सूक्ष्मसंपराय । संजम-स्थानक असंख्यात है, अंतर्मुहुर्त मांय ।। २४. सामाइयसंजयस्स णं भंते! केवतिया संजमट्ठाणा पण्णत्ता? गोयमा ! असंखेज्जा संजमट्ठाणा पण्णत्ता । २५. एवं जाव परिहारविसुद्धियस्स। (श. २५१४८६) सुहमसंपरायसंजयस्स--पुच्छा। गोयमा ! असंखेज्जा अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणा पण्णत्ता। (श. २५४८७) सोरठा २६. अंतर्महुर्त प्रमाण, संपराय-सूक्ष्म अद्धा । समय-समय प्रति जाण, चरण विशुद्ध विशेष थी ।। २७. ते माटै असंख्यात, संजम नां स्थानक तस् । अंतर्महर्ते थात, तिणसू अंतर्मुहूत्तिका ।। वा०-अंतमहत ने विषे थया ते अंतर्महुत्तिया निश्चय करिक अंतर्मुहूर्त प्रमाण ते सूक्ष्मसंपराय नों अद्धा। अने तेहनै प्रतिसमय चरण विशुद्ध विशेष भाव थकी असंख्याता ते संजमस्थान हुवै ते माटै असंख्याता अंतर्मुत्तिया संजमस्थान कह्या। २८. *यथाख्यात संजत नीं पूछा, श्री जिन कहै संपेख । अजघन्य-अनुत्कृष्ट संजम नों स्थानक भाख्यो एक ।। *लय : पूज भीखणजी तुम्हारा दर्शण वा०–'असंखेज्जा अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाण' त्ति अन्तर्मुहूर्तं भवानि आन्तर्मुहुत्तिकानि, अन्तर्मुहूर्तप्रमाणा हि तदद्धा, तस्याश्च प्रतिसमयं चरणविशुद्धिविशेषभावादसङ्खये यानि तानि भवन्ति, (व. प. ९१३) २८. अहक्खायसंजयस्स-पृच्छा। गोयमा ! एगे अजहण्णमणुक्कोसए संजमट्ठाणे पण्णत्ते। (श. २५१४८८) १७४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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