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________________ हवै । अथवा पंच शरीर विषे ह ते ओदारिक १, वैक्रिय २, आहारिक ३, तेजस ४, कार्मण ५ विषे हुवे। १४. छेदोपस्थापनिक इमहिज कहिवो, शेष चारित्र त्रिण जाणी। जेम पुलाक कह्यो तिम कहि, तीन शरीरे माणी ।। संयत किस क्षेत्र में १५. सामायिक संजत स्यूं प्रभुजी ! कर्मभूमि विषे थायो ? के अकर्मभूमि विषे ए है छै ? जिन कहै सांभल न्यायो ।। १४. एवं छेदोवट्ठावणिए वि । सेसा जहा पुलाए । (श. २०४७६) १५. सामाइयसंजए णं भंते ! किं कम्मभूमीए होज्जा? अकम्मभूमीए होज्जा? गोयमा ! १६ जम्मण-संतिभावं पडुच्च जहा बउसे । १६. जन्म अने छता भाव आश्रयी, कर्मभूमि विषे होइ । अकर्भभूमि विषे नहीं ए, बकुश जिम अवलोइ ।। सोरठा १७. साहरण आश्री एह, द्वै कर्मभूमि विषे वलि । अकर्मभूमि विषेह, सामायिक संजत हुवै ।। १८. * छेदोपस्थापनीक इमहिज कहिय, पुलाक जेम परिहारो । जन्म अने छता भाव आश्रयी, ह्व कर्मभूमि मझारो॥ १९. शेष बे चारित्त सामायिक जिम, जन्म छतै भाव जोइ । कै कर्मभूमि, अकर्मभूमि नहीं, साहरण विषे बिहुँ होइ । संयत किस काल में २०. * सामायिक संजत हे प्रभुजी ! कै अवसप्पिणी कालो? के उत्सप्पिणी काल विषे है, के बिहुँ नहिं तिहां न्हालो ? १८. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए य जहा पुलाए। १९. सेसा जहा सामाइयसंजए। (श. २५१४७७) २०. सामाइयसंजए णं भंते ! कि ओसप्पिणिकाले होज्जा? उस्सप्पिणिकाले होज्जा? नोओसप्पिणि नोउस्सप्पिणिकाले होज्जा? २१. गोयमा ! ओसप्पिणिकाले जहा बउसे । २१. श्री जिन भाखै सांभल गोयम ! ह अवसप्पिणी कालो। जेम बकुश ने कह्यो तिम कहि, वारू रीत विशालो। सोरठा २२. है अवप्पिणी काल, उत्सप्पिणी काले हवै। बिहुं नहीं तिहां न्हाल, ह सामायिक संजती ।। २३. जो ह अवसप्पिणी काल, तो जन्म छता भाव आश्रयी । तीजै आरै न्हाल, फुन ह चोथै पंचमै ॥ २४. साहरण आश्रयी होय, तो कोइक आरा जिसो। काल जिहां अवलोय, त्यां सामायिक चरित्त है। २५. जो है उत्सप्पिणी काल, तो जन्म ऊपजवा आश्रयी । दजै आरै न्हाल, वलि तीजै चउथै हुवै॥ २६. छता भाव आश्रित्त, तृतीय तुर्य आरै हुवै । शेष विषे न कथित्त, ए सामायिक संजती ॥ २७. साहरण आश्रयी होय, तो कोइक आरा जिसो । काल जिहां है सोय, ज्यां सामायिक संजती ।। २८. अवउत्सप्पिणी नांहि, त्यां सामायिक चरित्त है। तो दुषमसुषम सम ताहि, तेह विदेह विषे हुवे ।। * लयः पर नारी नों संग न कीज १७. भगवती बोर Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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