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वा०-- एकादशम गुणठाणे प्रथम समय नै विषे हीज मरण पाम्यो अबस्थित जघन्य एक समय हुवै अने ग्यारमें गुणस्थान अंतर्मुहूर्त्त प्रमाण अवस्थिते परिणामे रहे ते भाणी अवस्थित परिणाम उत्कृष्ट अंतर्मुह हुए इस्पारमें गुणठाणे अवस्थित परिणाम हुवे अने वारमें गुणस्थान वर्द्धमान परिणाम हुवे । ६०. * स्नातक है भगवंतजी ! वर्द्धमान परिणामेह लाल रे । केतली काल रहै तिको ? भाखोजी ६१. श्रीजिन भा
लाल
रे ।
जन्य थी, अंतर्मुहूर्त तसु अंतर्मुहूर्त सोय लाल
उत्कृष्ट पिण
सोरठा
सोरठा तणां सुजन्य, अंतर्मुहूर्त जघन्य से
वर
केवल पाय, रहि ताय,
६५. स्नातक
६२. स्नातक
नैं
वर्द्धमान, चवदम गुणठाणेज ह्र । तेह तणीं स्थित जान, अंतर्मुहुर्तपणां थकी ॥ ६३. "फुन स्नातक जे केवली, अवस्थित परिणामेह लाल रे । केतली काल हुवै तिको ? गोयम पूछा एह लाल रे ॥ ६४. श्री जिन भार्थ जपन्य थी, अंतर्मुहूर्त्त इष्ट लाल रे । देसूण पूर्व कोड़ हो, आयो उत्कृष्ट लाल रे ॥
६६. जे
परिणामे
६७. स्नातक
६८. लागां
गुणगेह गुणगेह
*लय कर्म भूगत्या हीज छूटये
:
होय होय
नं फुन जोड़ देश ऊण पुब्वकोड़, तास
नवमो मास,
उत्कृष्ट आऊ तास,
६९. ज्यां लग चवदम ठान, तेरम गुणे सुजान, ७०. 'इम
साधिक अठ वास, उत्कृष्टो सुविमास, अवस्थित ७१. जघन्य साधिक अठ वास,
अवस्थित परिणाम जे। न्याय कहिये हिवं ॥ केवल ज्ञानज ऊपनां । कोड पूर्वनों जाणं ।। प्राप्ति थयो नहि त्यां लगे । अवस्थित परिणाम तसु ॥ कणो पूर्व कोड जे परिणाम है ।। आयुवंत मनुष्य जे मोक्ष कही छे तास, उपंग उववाई ने विषे ।। ७२. गर्भ मास इण न्याय, जघन्यायु में आविया । इमहिज उत्कृष्ट मांय, गर्भ मास पुख्वकोड़ में ॥ ७३. नवम वर्ष नुं देश, तेह अपेक्षा वर्ष नव ।
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ए जिन वचन विशेष साधिक अठ वर्षायु शिव || ' ( ज०स० ) ७४. *बेसी छपन नं देश ए. च्यारसौ गुणपचासमी ढाल लाल रे । भिक्षु भारीमात ऋषिराम थी,
'जय - जश' हरष विशाल लाल रे ।।
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लाल रे ।
रे 11
अवस्थित परिणाम जे । किण रीत कहीजिये ।।
अंतर्मुहूर्त अवस्थित । शेलेसी वर्द्धमान है ॥
६०. सिणाए णं भंते ! केवतियं कालं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा ?
६१. गोमा ! जण वि अंतोतं, उस्को वि अंतोतं (श. २५/३००)
६२. स्नातको जन्तराभ्यामन्तर्गतं वर्द्धमानपरिणामः, (बृ. प. ९०३) ६३. केवतियं कालं अवट्टियपरिणामे होज्जा ?
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६४. गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुचकोडी | (श. २५०३८९)
६५. अवस्थितपरिणामकालोऽपि जघन्यतस्तस्यान्तर्मुहतं, कथम् ?, (बृ. प. ९०३) ६६. यः स केवलज्ञानोत्पादानन्तरमन्तर्मुहुर्तमवस्थित परिणामो भूत्वा शैलेशी प्रतिपद्यते तदपेक्षयेति, ( वृ. प. ९०३ ) ६७-६९. उसे सुणा पुव्यकोडी' त्ति पूर्वकोयायुषः पुरुषस्य जन्मतो जघन्ये नव वर्षेध्वतियतेषु केवलशानमुत्पद्यते ततोऽसौ स पूर्व कोटमवस्थितपरिणामः शैलेशी यावद्विहति शैलेश्या च वर्द्धमान परिणामः स्यादित्येवं देशोनामिति । ( वृ. प. ९०३ )
७१, ७२. जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि आउए सिज्यंति ?
गोयमा ! जहणेणं साइरेगट्ठवासाउए उक्कोसेणं पुव्यकोडियाउए सिति । ( ओवाइयं सू० १८८ )
श० २५, उ० ६ ० ४४९ १३९
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