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२६. जो सलेशी नं विषे हुव
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तो कति लेस्सा विधे एह ? लाल रे। जिन कहै कृष्ण विषे हुवे, जावत शुक्ल विषेह लाल रे ।।
वा० 'ए पुलाक, बकुश, पडिसेवणा प्रतिसेवक ते तीन भली लेश्या नैं विषे किम हुवै तेह्नों उत्तर- ए दोष रूप कार्य करीनें छेड़े आलोवणा सन्मुख थया ते वेला नी अपेक्षाय भली लेश्या संभव, जिम कषायकुशील अप्रतिसेवक ते दोष न सेवेह का ते कायपणं अंगीकार करते आदि नीं अपेक्षाय अतिसेवरूप संभव तथा मनपर्यावज्ञान अप्रमत्तपणा में अपने इमहिन आदि ए पि अप्रमत्तपणं आदि में दिए जो वयं ते अंत नीं अपेक्षाय भली लेश्या जणाय छै । जे पुलाक लब्धि फोड़वै तथा प्रथमद्वार में ज्ञानपुलाक, दर्शणपुलाक आदि कह्यो तथा पडिसेवणा द्वारे मूल प्रतिसेवक उत्तर प्रतिसेवक कला तथा वकुश आभोगधकृत अगाभोगवकुश को अर्न उत्तर गुग प्रतिसेवक का अने पढिसेवाकुशील में आमोदप्रतिसेवनादिक कला अने कह्या, मूलगुल उत्तरगुण में दोष लगाये बनी कुरा पडियणाशील में किय शरीर कह्यो, वैक्रिय तेजु समुद्घात पिण कही। ए दोष सेवे ते प्रत्यक्ष खोटी लेश्या, खोटा परिणाम, खोटा अध्यवसाय ते भणी आलोवणा सन्मुख हुवै ते वेला नीं अपेक्षाय भली लेश्या संभव । वलि अनेरो न्याय हुवै तो ते पिण केवली वर्द ते सत्य ।
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वली वृत्तिकार का भाव लेश्या नीं अपेक्षाय प्रशस्त तीन नैं विषे पुलाकादिक तीन नियंठा अवसर अने कपायकुशील में विषे पिण, सडपाय आश्रित्य पूर्व प्रतिपक्ष वली अनेरी या विधे हुवे इम ए का एहवं संभाविये एह वृत्ति में कहा।
पूर्वप्रतिपा केही कहिये ? एह अर्थ भगवती नी टीका नी पर्याय में विषे इम लियोपस्थपारिप्रतिपानंतर कालो गतः पूर्वप्रतिपष्णक एहनों अर्थ - जेहने चारित्र लीधां पछे कितोयक काल गयो ते पूर्व प्रतिपन्न कहिये एतले चारित्र लेवे ते वेला तो भली लेश्या हुवै अनें लीधां पर्छ कितोयिक काल गयां अनेरी लेश्या पण हुवै। इण लेखे साधु में अशुद्ध लेश्या पिण आव तेहनों प्रायश्चित लेवं । दोष रो प्रायश्चित ते दोष सेवा रा भाव ते खोटी लेश्या जाणवी ।' (ज० स० )
२७. निर्धनीं पूछा कियां, श्रीजिन भाखे सोय लेश्या सहित विषे हुवै, अलेशी नहि होय २८. जो लेश्या सहित विषे हुवै, तो किसी लेश्या विषे होय ? लाल रे । जिन भाखे सुण गोयमा ! एक शुक्ल लेश्या विषे जोय लाल रे ।।
लाल रे । लाल रे ।
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रे ॥
२९. स्नातक नीं पूछा कियां, तब भाखे जिनराय लाल रे सलेशी नै विषे हुवै, तथा अलेशी मांय लाल
३०. जो सलेशी नैं विषे हुवै, तो किती लेश्या विषे होय ? लाल रे । जिन भावं गुण गोयमा ! एक परम शुक्ल विषे जो लाल रे ।। १९३६ भगवती जोड़
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२६. जइससे होज्जा से भंते! कति लेस्सासु होल्वा ?
गोयमा ! हसु लेस्सासु होज्जा, तं जहा- कण्ह लेस्साए जानलेखाए । (स. २५०२७६) वा०-- "तिसु विशुद्ध सासु ति भावलेण्यापेक्षा प्रशस्ता तिसृप पुलाकादयस्त्रयो भवन्ति कषायकुशीलस्तु षट्स्वपि सकयायमेव आथित्य पुख्वपक्षिवनपुग अन्नयरी व लेखाए' इत्येतदुक्तमिति संभाय्यते, (बृ. प. ९०२)
२७. नियंठे णं भंते ! – पुच्छा ।
गोयमा ! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा ।
(श. २५।३७७) २८. जइसलेस्से होज्जा, से णं भंते ! कतिसु लेस्सासु होज्जा ?
गोयमा एक्काए सुक्कलेस्साए होला ।
२९. सिणाए- पुच्छा ।
(श. २५.३७८)
गोयमा ! सलेस्से वा होज्जा, अलेस्से वा होज्जा ।
(२५०२७९) ३०. जइ सलेस्से होज्जा, से णं भंते ! कतिसु लेस्सासु होज्जा ?
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