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५७. जिन कहै संख असंख नहीं, अनंती हुवै जेह ।
एवं जावत जाणवो, सर्व अद्धा लग एह ॥
५८. बहु पुद्गलपरावर्त विषे, स्यं संख्याती भदंत !
अवसप्पिणी उत्सप्पिणी ? पूछ गोयम संत ।। ५९. जिन कहै अव-उत्सप्पिणी, संख्याती न थाय ।
असंख्याती पिण नहीं हवं, अनंती कहिवाय ।।
५७. गोयमा ! नो संखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ,
नो असंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ, अणंताओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ। एवं जाव सव्वद्धा।
(श. २५।२६७) ५८. पोग्गलपरियट्टा णं भंते ! कि संखेज्जाओ ओस
प्पिणि- उस्सप्पिणीओ- पुच्छा। ५९. गोयमा ! नो संखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ
नो असंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ,
अणंताओ औसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ। (श. २५।२६८) ६०. तीतद्धा णं भंते ! कि संखेज्जा पोग्गलपरियट्टा---
पुच्छा । ६१. गोयमा! नो संखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, नो असंखेज्जा
पोग्गलपरियट्टा, अणंता पोग्गलपरियट्टा। ६२. एवं अणागयद्धा वि । एवं सव्वद्धा वि ।
(श. २५।२६९) ६३. अणागयद्धा णं भते ! कि सखेज्जाओ तीतद्धाओ ?
असंखेज्जाओ० अणंताओ० ६४. गोयमा ! नो संखेज्जाओ तीतद्धाओ,
६५. नो असंखेज्जाओ तीतद्धाओ, नो अणंताओ तीतद्धाओ।
६०. प्रभु ! अतीत अद्धा विषे, स्य संख्याता सोय ?
पुद्गलपरावर्त हवै, के असंख अनंता जोय? ६१. जिन कहै संख्याता नहीं, असंख्याता नांहि ।
अनंत पुद्गलपरावर्त हुआ, गया काल रै मांहि । ६२. काल अनागत ने विषे, होसी इमज अनंत ।
एवं सर्व अद्धा विषे, अनंत पुद्गल हुंत ।। ६३. काल अनागत ते प्रभु ! स्यं संख्यातो सोय?
जेह अतीत अद्धा थकी, के असंख अनंतो होय? ६४. जिन भाखै सुण गोयमा ! काल अनागत सोय ।
संख्यातो नहिं छै तिको, गया काल थी जोय ।। ६५. असंख्यातो पिण ते नहीं, काल अतीत थी जेह ।
वलि अनंतो पिण नहीं, गया काल थी तेह ।। ६६. काल अनागत छै तिको, गया काल थकीज ।
एक समय वर्तमान जे, अधिकोज कहीज ।। ६७. काल अतीतज छै तिको, काल अनागत थीज ।
एक समय ऊणो हुवै, जिन वच सलहीज ।।
वा०-अनागत काल अतीत काल थकी एक समय अधिक छ, ते किम ? जेह भणी अतीत काल नी आदि नहीं, अनागत काल नों अंत नथी। ते माटै अनादि अनंतपणे करी बिहुं सरीखा । ते बिहुँ नै माहै भगवंत नों प्रश्न - समय वत्तै छ तेह अविनष्टपण करी अतीत काल माहै प्रवेश न कर अविनष्टपणां नां साधर्म्य थकी। अनागत काल नै विषे क्षेपविय तिवारै समय अधिक अनागत काल हुवै एतला माटज अतीतकाल अनागत काल थी समय ऊणो हवै।
६६. अणागयद्धा णं तीतद्धाओ समयाहिया,
६७. तीतद्धा णं अणागयद्धाओ समयूणा ।
(श. २०२७०) वा०-'अणागयता णं तीतद्धाओ समयाहिय' त्ति अनागतकालोऽतीतकालात्समयाधिकः, कथं ? यतोऽतीतानागतौ कालावनादित्वानन्तत्वाभ्यां समानी, तयोश्च मध्ये भगवतः प्रश्नसमयो वर्त्तते, स चाविनष्टत्वेनातीते न प्रविशति अविनष्टत्वसाधादनागते क्षिप्तस्ततः समयातिरिक्ता अनागताद्धा भवति, अत एवाह --अनागतकालादतीतः कालः समयोनो भवतीति,
(वृ. प. ८८९) ६८. सव्वद्धा णं भंते ! कि संखेज्जाओ तीतद्धाओ
पुच्छा । ६९. गोयमा ! नो संखेज्जाओ तीतद्धाओ, नो असंखेज्जाओ
तीतद्धाओ, न अणंताओ तीतद्धाओ। ७०. सव्वद्धा णं तीतद्धाओ सातिरेगदुगुणा,
६८. सर्व काल भगवंत जी! स्यू संख्यातो कहेह । __ जेह अतीत अद्धा थकी? इत्यादिक पूछेह ।। ६९. जिन कहै संख्यातो नहीं, अद्धा अतीत थी जेह ।
असंख अनंतो पिण नहीं, गया काल थी तेह ।। ७०. सर्व अद्धा सह काल ते, काल अतीत थी सोय ।
दुगुणो समय अधिक वलि, वारू न्याय सुजोय ।।
*लय : खुसामवी दातार नों
१०० भगवती जोड
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