SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वा० - तीनूं काल नैं विषे जे समय पूछे ते समय सेज परमाणु पिण ari अ निरज परमाणु पिण घणां । किणहि काले जे एकला संज सकंप छै इन हुवे । तथा एकला निरेज अकंप छे इम पिण न हुवं । ते माटै बिहुं नों अंतर नथी । १११. बहुवच दोय प्रदेशिया, देश चलित में ताहि कितो काल अन्तर हुवै ? जिन कहै अंतर नांहि ॥ ११२. सर्व चलित अंतर कितो ? जिन कहै अंतर नांव । एवं जावत बहु वचे, अनंत प्रदेशिया पाय ॥ सकम्प निष्कम्प पुद्गल का अल्पबहुत्व ११३. सर्व चलित परमाणु नें, तथा अचल ने ताम | कुणकुण ते जावत हुने विसेसाहिया वा स्वाम ? 1 ११४. जिन कहै थोड़ा सर्व थी, सर्व चलित परमाणु । अचलित असंचगुणा कह्या द्रव्य थकी ए जाणु ॥। वा० द्रव्य चिताये परमाणु पद नैं सर्व चलितपणों अचलितपणों ए बे पदहीज हुवै ते कह्या हिवै संखेज्जप्रदेशिक खंध असंख्यातप्रदेशिक खंध अनंत प्रदेशिक बंध - ए तीन पद छ तेहमें एक-एक पद नै विषे तीन-तीन भेद करिवा देश चलित, सर्व चलित, अचलित ए तीन विशेषणपणां थकी तीनूंइ दुर्व ! ११५. प्रभु दोष प्रदेशिया बंध नं, देश एज सर्व एव । निरेज ने कुणकुण तिके, जाव विसेसाहिया ज्ञेय ? ११६. जिन कहै थोड़ा सर्व थी, दोय प्रदेशिया बंध । सर्व एज सर्व चलित ते, वारू जिन वच संध ॥ ११७. तेह थकी देश चलित ते, असंखेजगुणा थात । तेह की अचलित तिके, असंख्यातगुणा ख्यात ॥ ११. एवं जावत जाणवा, असं प्रदेशिक बंध दोष प्रदेशिया नों पर पूर्व रीत प्रबंध | ११९. ए प्रभु ! अनंत प्रदेशिया, देश एज सर्व एय । | निरेज ने कुणकुण थकी, जाव विसेसाहिया ज्ञेय ? १२०. जिन कहै थोड़ा सर्व थी, अनंत प्रदेशिया खंध । सर्व एज सर्व चलित ते, ए जिन वचन सुसंध ॥ १२१. तेही अचलित जिके, अनंतगुणा है सोय तेह की देश चलित ते अनंतगुणा अवलोय || १२२. प्रभु ! परमाणुपोम्बला, संख प्रदेशिया फेर। असंख प्रदेशिया खंध वली, अनंत प्रदेशिका हेर ।। १२३. देश चलित सर्व चलित नैं, अचलित नैं फुन जोय । द्रव्य थकी ने प्रदेश थी, उभय थकी अवलोय || १२४. कवण कवण थी जाब ही, विसेसाहिया या ताम अल्पबहुत्व त्रिहुं विधकरी ? पूछे गोतम स्वाम ॥ Jain Education International देतेयाण केवति फाल (म. २५।२३३) होइ ? नत्थि अंतर (श. २५।२३४) १११. दुपदेसिया भंते! बंधा अंतरं होइ ? नत्थि अंतरं । ११२. सव्वेयाणं केवतियं कालं अंतरं । निरेयाणं केवतियं कालं अंतरं होइ ? नत्थि अंतरं । एवं जाव अणतपदेसियाणं । (श. २५२३५) ११२. एएस में मंते ! परमाणुपमालाणं सव्वपाणं निरेयाण य कयरे कयरेहितो जाव (सं. पा.) विसेसाहिया वा ? ११४. गोमा | सत्योदा परमाणुयोग्यता सा निरेया असंसेगा। (श. २५। २३६ ) ११५. एएस भंते दुपदेसिया बंधाणं देतेयाणं, णं ! सच्या निरेषाण व कमरे कमरेहिनो जाब (सं. पा.) साहिया वा ? ११६. गोयमा ! सव्वत्थोवा दुपदेसिया खंधा सव्वेया, ११७. देसेया असंखेज्जगुणा निरेया असंखेज्जगुणा । ११८. एवं जाव असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं । (रु. २५०२३७) ११९. एएसि णं भंते! अनंतयवेसिवाणं बंधा देखेयाणं, सव्वेयागं निरेवाभव करे इयरहितो जाय (संपा.) विसेसाहियावा ? १२०. गोयमा ! सव्वत्थोवा अणतपदेसिया खंधा सव्वेया, १२१. नियागंता, देसेवा अनंतगुगा। (श. २५।२३८ ) १२२. एएसभ परमाणुयोग्यताएं संपदेखि याणं, असंखेज्जपदेसियाणं अणतपदेसियाण य खंधाणं १२३ सेवा निरेवाणं दबटुवाए, पदेसयाए, दद्रुपदेवाए " For Private & Personal Use Only 1 १२४. कयरे कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा? विसेसाहिया बा ? श० २५, उ० ४, ढा० ४४२ ९१ www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy