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________________ ४३. वलि मुनि शिर थी सोय, जुआं लोखां काढियां । तसु लेखे अवलोय, तेहनै पिण ह शुभ क्रिया ।। ४४. मुनि अति तृषा अचेत, सचित अचित्त जल पाय करि । कीधो गृहस्थ सचेत, तसु लेखै हुवै शुभ क्रिया ।। ४५. थाको मुनी उजाड़, गाडे हय खर चाढकै । आणे ग्राम मझार, तसू लेखै है शुभ क्रिया ।। ४६. इत्यादिक अवलोय, मुनि नैं जे कल्पै नहीं। ते कर कार्य गहि कोय, तसु लेखै ह शुभ क्रिया ।। ४७. जो या बोलां मांहि, नहि है गहि नै शुभ क्रिया। तो हरस छेद्यां पिण ताहि, किम शुभ क्रिया कहीजिये ।। ४८. हरस छेदण री ताम, जिन मुनि आज्ञा नहि दियै । जिन आज्ञा विण काम, कीधा नहि छै धर्म पुन्य ।। ४६. गृहस्थ मुनि नी पेख, हरस छेदवै धर्म पुन्य । तो मुनि कार्य अनेक, तसु लेखे कीधां धरम ।। ५०. मुनि पग कांटो जाण, वलि फांटो चक्ष थकी। गहि काढे विण आण, तसू लेखे धर्म गहि भणी ।। ५१. दुखै पेट अपार, मुनि चित व्याकुल दुख घणों। गहि मसलै करि सार, तेहनै पिण पुन्य लेख तम् ।। ५२. पेटूची' अति दुक्ख, दूठी भूती सम कहै। गहि मसले करि सुक्ख, तेहनै पिण तसु लेख पुन्य ।। ५३. अटवी विषे अचेत, हय खर सकट बेसाण ने । आणे गहि पुर तेथ, तेहनै पिण पुन्य तसु मते ।। ५४. मुनि थावो मग मांय, बोभ, घणों पोथ्यां तणों। पग भर खिस्यो न जाय, तो बोझ उठायां पिण धरम ।। ५५. अरण्य वलि पूर माय, संत तृषातूर चेत नहीं। सचित्त उदक गहि पाय, तेहनै लेखै धर्म तसु ।। ५६. इत्यादिक अवलोय, गृहि मुनि नां कारज करै। हरस छेद्यां धर्म होय, तसु लेखे सह में धरम ।। ५७. मुनि नी हरस छेदंत, तेहनै अनुमोदै मुनि । दंड चउमासी हुंत, नशीत उद्देशे तीसरे ।। ५८. अनुमोद्यांई पाप, तो गहि छेद्यां पुन्य किम ? जिन आज्ञा चित स्थाप, आज्ञा विण नहि धर्म पून्य ।। ५६. सामायक पचखाण, निरवद्य कार्य अन्य वलि । ग्रहस्थ करै को जाण, ते मुनि अनुमोदै तसु । ६०. निरवद्य कार्य ताय, गृहि कीध धर्म पुन्य तसु । अनुमोदै मुनिराय, तेहनै पिण धर्म पुन्य छै ।। ६१. विणज अनै व्यापार, सावज्ज कार्य अन्य वलि । ग्रहस्थ कर तिवार, धर्म पुन्य तेहने नथी ।। ६२. सावज्ज कार्य ताय, गहि कीधे पिण पाप छ । अनुमोदै मुनिराय, प्रायश्चित आवै तसु॥ ५७. जे भिक्खू अप्पणो कायंसि "अंसियं वा""अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं "अच्छिदंतं वा विच्छिदंत वा सातिज्जति । (निसीह० ३।३४) १. धरण। श०१६, उ०३, ढा० ३५१ २५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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