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________________ ७८. तेह नेरइया जोय, पंचम विकल्प होय । आज हो, घणेरे द्वादश नोद्वादश समज्जिया जी ॥ ७९. तिण अर्थे इम ख्यात, विकल्प पंच संजात । आज हो, इमहिज जावत पणिवकुमार ने जी ॥ ८०. पुढवी पृच्छा ताय, जिन कहै पृथ्वीकाय । आज हो, विकल्प चरम दोष घुर त्रिहं नहीं जी | ८१. किण अर्थे जिनराय ! घुर त्रिण विकल्प नांय । आज हो, विकल्प चरम दोय पावै वलि जी ? ८२. जिन कहे पृथ्वी जेह, बहु-द्वादश करि तेह | आज हो, करें प्रवेशन प्रवेशने करी जी ॥ ८३. तेह रइया ख्यात बहु-द्वादश उपपात । आज हो, विकल्प चडयो आयो इह विधे जी ॥ ८४. अथवा पृथ्वी जेह, बहु-द्वादश करि तेह | लग वलि जी ॥ आज हो, करै रे प्रवेशन ग्यारे विकल्प अपना ८५. कहिये पृथ्वी तेह, तेह, पंचम आज हो, घणेरे द्वादश नोद्वादश पाय । ८६. तिण अर्थे इम वाय, चरम भंग बे आज हो, इमहिज जाव वणस्सइकाइया जी ॥ ८७. बेदिया बी लेह जावत सिद्ध लगेह | आज हो, कहिया रे नारक नीं परि फुल एहने जी ॥ हे प्रभु ! नारक एह बार समज्जिया तेह | आज हो, सगलां नों अल्प-बहुत्व भणवो इहां जी ।। ८९. छक्क समजत जेम, अल्पबहुत्व छे एम। आज हो, नवरं विशेष इतो ते सांभलो जी ।। ९०. बारस एहवं नाम, कहिवुं सगलै ठाम | आज हो, शेष विस्तार तिमज कहिवो सही जी || चतुरशीति समजतादि पद एह । जी ॥ Jain Education International ९१. नारक स्यूं जगनाथ ! नरक विषे उपपात । आज हो, एक चउरासी करिकै समज्जिया जी ? ९२. एक आदि घी एह स्वासी लगंज तेह। आज हो, कहिये रे नोचउरासी करि समजता जी ? ९३. एक चउरासीमेह, नोचउरासी करेह । आज हो, हुवै रे समजत उपजवो तसुं जी ? ९४. के बहु-चउरासी करेह, हुवै समजित जेह । आज हो, घणेरे चउरासी नोचउरासीइं जी ? ९५. तब भाखे जगनाथ, बउरासी उपपात । आज हो, जावत पंचम विकल्प पिण हुवै जी ॥ ७८. ते णं नेरइया बारसएहि य नीबारसएण य समज्जिया । ७९. से तेणट्ठेणं जाव समज्जिया वि । एवं जाव थणियकुमारा । ( श० २०।११३) ८०. पुढविक्काइयाणं - पुच्छा । V गोमा ! पुढविनकाइया नोयारससमज्जिया नो नोवारसमजिया नो बारसएप व नोवारएण व समजिया, बारसहि समज्जिया, बारसेहि य नोबारसएण य समज्जिया वि । (४० २०१११४) ८१. से केणट्ठेणं जाव समज्जिया वि ? ८२. गोयमा ! जे णं पुढविक्काइया नेगेहि बारसएहि पवेसणएहि पविसंति ८३. ते णं पुढविक्काइया बारसएहि समज्जिया । ८४. जेणं पुढविक्काइया नेगेहि बारसएहि अण्णेण य जहष्पेणं एक्केण वा दोहि वा तीहि वा उनकोसेणं एक्का रस एवं पवेसणएणं पविसंति ८५. ते णं पुढविक्काइया बारसएहि य नोवारसएण य समज्जिया । ८६. से तेणट्ठेणं जाव समज्जिया वि। एवं जाव वर्णस्स इकाइया । ८७. बेइंदिया जाव सिद्धा जहा नेरइया । ( श० २०।११५ ) ८८. एएसि णं भंते ! नेरइयाणं बारससमज्जियाणंसम्बेसि अप्पा ८९. जहा छक्कसमज्जियाणं, नवरं ९०. बारसाभिलावो, सेसं तं चैव । (श० २०१११६) ९१. रामं कि चुनसीतिसमज्जिया ? ९२. नोचुलसीतिसमज्जिया ? ९३. चुलसीतीए य नोचुलसीतीए य समज्जिया ? ९४. सीती समनिया ? ससीतीहि मनोपुलसीतीए य समज्जिया ? ९५. गोमा रया चुलसीतिसमज्जिया वि जाय चुलसीतीहि यमोलसीसीए यसमा वि (श० २०/११७) श० २०, उ० १०, ढा० ४०८ ३७३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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