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कतिसंचितादि पद
४६. हे प्रभुजी ! स्यूं नेरइया रे, कइसंचिया ताय ? के छ अकइसंचिया रे ? के अवक्तव्य कहाय के ?
सोरठा
४७. कति संख्या बे आद, तेह एक जे समय में । ऊपजवे करि लाघ, संचित पिंट समूह ते ।।
४८. संख्या निषेध तेह, असंख अनंता इक समय । ह्रपिंड ऊपजबेह, कहिये अकतिसंचिता ।। ४९. कहि सकिये नहि बेह, तेह अवक्तव्य संचिता । एक समय में एह, एक उपजवं करि जिके ||
५०. श्री जिन भाखे नेरइया रे,
कइसंचिया पिण थाय । वलि छै अकइसंचिया रे, अवक्तव्यसंचिताय के ।। ५१. कि अर्थ प्रभु । इम कह्यो रे,
जिन भाव सुण गोयमा ! रे,
जाव अवक्तव्य जाण । प्रवर न्याय पहिलाण के ॥ ५२. संख्यात प्रवेश करी रे, जे नारक प्रवेश करेह । कहिये छे जे नेरइया रे, कसंचिया जेह के || ५३. असंख्याते प्रवेशने करी रे, जे नारक प्रवेश करेह । कहिये छै ते नारकी रे, अकइसंचिया तेह कै ॥ ५४. एक प्रवेश करी रे, जे नारक प्रवेश करेह ।
कहिये छै ते नेरइया रे, अवक्तव्यसंचिया जेह कै ॥ ५५. तिण अर्थे करि गोयमा ! रे, यावत ही अवधार । कहिये अवक्तव्यसंचिया रे,
इम जाव पणियकुमार के || ५६. पृथ्वीकायिक नी पृच्छा रे, कइसंचिया न पाय । कहिये असंचिया रे, अवत्तगसंचिया नांय के ॥
५७. किण अर्थ प्रभु इस
को रे
जाव अवक्तव्य नांय | जिन भाखं सुण गोयमा रे, एह तणों कहूं न्याय के ॥ ५८. असंख्यात प्रवेशन करी रे, पृथ्वीकाइया जीव करे प्रवेशन जेह में रे, अकइचिया कहीव के ।। ५९. ति अर्थ करि गोयमा रे, वायत हम कहिवाय ।
नहीं अवक्तव्यसंचिया रे, इम जाव वणस्सइकाय के || ६०. बेहंदिया जावत बलि रे, वैमानिक लग धार। जेम का रया रे, तिम कहिया सुविचार के ।।
*लय सीता सुन्दरी रे
३६६ भगवती जोड
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४६. नेरइयाणं भंते ! कि कतिसंचिया ? अकतिसंचिया ? अवत्तव्वगसंचिया ?
४७. 'कइसंचिय' त्ति कतीति संख्यावाची ततश्च कतित्वेन सचिताः एकसमये संख्याजोत्पादन पिण्डिताः कलिसञ्चिताः (१००७९९) ४८. 'अकइसंचिय' त्ति नवरम् 'अकइ' त्ति संख्या निषेध:असंख्यातत्वमनन्तत्वं चेति ( वृ० प० ७९९ ) ४९. 'अव्वत्तगसंचिय' त्ति वक्तुं न शक्यतेऽसाववक्तव्यः स चैककस्तेनावक्तव्येन एककेन एकत्वोत्पादन सञ्चिता अवञ्चिताः,
५०. गोयमा ! नेरइया कतिसंचिया वि, अवत्तव्वगसंचिया वि ।
(बु० १०७९९) वि, अकतिसंचिया ( श० २०/९७ )
५१. सेकेणट्ठे जाव अवत्तव्वगसंचिया वि ? गोयमा !
५२. जे
या संसेज्जएणं पवेसमएणं पविसंति ते णं नेरइया कतिसंचिया,
५३. जे
नेरइया असंखेज्जएणं पवेसणएवं पविसंति ते णं नेरइया अतिसंचिया,
५४. जे णं नेरइया एक्कएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया अवत्तव्वगसंचिया ।
५५. से तेणट्ठेणं गोयमा ! जाव अवत्तव्वगसंचिया वि । एवं जाव थणियकुमारा । ( श० २०१९८ )
५६. पुढविक्काइयाणं पुच्छा ।
मोगमा ! पुढविकाइया नो कतिसंचिया, अकनिसंचिया, नो अवत्तव्वगसंचिया । (श० २०/९९ ) ५७. सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वृच्चइ जाव नो अवत्तव्वगसंचिया ? गोयमा !
५८. विकाया असणं पणएवं पविति ।
५९. से तेणट्ठेणं जाव नो अवत्तव्वगसंचिया । एवं जाव वणस्सइकाइया |
६०. बेंदिया जाव वैमाणिया जहा नेरइया ।
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( श० २०/१०० )
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