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________________ ल. दे.क. दे. मृ. २५ स स १ १ २६ स स ३ २७ स स स १ २८ स स स ३ हिवै छ फर्श नां ३८४ भांगा, तिनमें प्रथम चउभंगी सर्व कर्कश सर्व गुरु अनं शीत उष्ण एक वचन करी कहे छे ३१ उ. नि. स ४५०. जो फर्श तिण में षट पाय, तो सर्व कर्कश सहु गुरु थाय । देश शीत देश उष्ण वक्ख, देश निद्ध अने देश लुक्ख ॥। देश शोत देश उष्ण तेह | इम जाव सोलमों ख्यात ।। देश शीत देश उष्ण मान । ए तृतीय भंग इम लहिये ॥ देश शीत देश उष्ण जोय । एतुर्य भंग कहिवाय ॥ ४५१. सर्व कर्कश सहु गुरु जेह, देश निद्ध देशा लुवखा बात 7 १ ३ ४५२. सर्व कर्कश सहु गुरु जान, देशा निद्धा देश लुक्ख कहिये, ४५३. सर्व कर्कश सह गुरु होय, देशा निद्वा देशा लुक्खा थाय, Jain Education International हि दूजी चउभंगी सर्व कर्कश सर्व गुरु अनं शीत एक वचन अन उष्ण बहु वचन करी कहै छे ४५४. सर्व कर्कश सहु गुरु जान, देश शीत देशा उष्णा मान । देश निद्ध देश ख ताम, ए पंचम भांगो पाम ।। ४५५. सर्व कर्कश सहु गुरु जान, देश शीत देशा उष्णा मान । देश निद्ध देशा लुक्खा थाय, ए षष्टम भंग कहाय ॥ ४५६. सर्व कर्कश सह गुरु जान, देश शीत देशा उष्णा मान । देशा निया देश लुक्ख मंत, ए सप्तम भंगो त ।। ४५७. सर्व कर्कश सह गुरु जान, देश शीत देशा उष्णा मान देशा निद्धा देशा लुक्खा पाय, ए अष्टम भांगो थाय ॥ हि आठ भांगा सर्व कर्कश सर्व गुरु अने शीत बहु वचने करी कहै छे ४५८. सर्व कर्कश सह गुरु देख, देशा शीता देश उष्ण पेख । देश निद्ध देश लुक्ख भाली, भंग नवमों एह निहाली ।। ४५९. सर्व कर्कश सह गुरु सोय, देशा शीता देश उष्ण जोय । देश निद्ध देशा लुक्खा संच, एह भांगो दशमो विरंच ॥ ४६०. सर्व कर्कश सहु गुरु जान, देशा शीता देश उष्ण मान । देशा निद्धा देश लुक्ख कहिये, ए ग्यारम भांगो लहिये || ४६१. सर्व कर्कश सहु गुरु जान, देशा शीता देश उष्ण मान । देशा निढा देशा लुक्खा जोय, ए द्वादशमों भंग होय ॥ ४६२. सर्व कर्कश सहु गुरु जान, देशा शीता देशा उष्णा मान । देश निद्ध देश लुक्ख जोय, ए भांगो तेरमों होय ।। ४६३. सर्व कर्कश सह गुरु जान, देशा शीता देशा उष्णा मान । देश निद्व देशा लुक्खा देख, ए चवदमो भांगो पेख ॥ ३०२ भगवती जोड़ २९ ३० ३१ ३२ ३२ ल. उ. स स स स स स स ३ स स स ३ ३ इस ए पंच स्पर्श नां सर्व भांगा १२८ हुवे । लु. दे.क. दे.मृ. स १ १ स ३ For Private & Personal Use Only १ ४५०. जइ छप्फा से ? १. सब्वे कक्खडे सव्वे गरु देसे सीए देसे उसने देसे निद्धे देसे लुक्खे, ४५१. २. सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसा लुक्खा, एवं जाव १६, www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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