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________________ हिवै पाछलो धड़ो कहै छै३९८. वर्ण नां चवदै सौ दोय, गंध नां बावन अवलोय । रस नां चवदै सौ बे भणवा, फर्श नां दोयसौ नेऊ थुणवा ।। ३९९. ए सर्व भांगा सुजगीस, इकतीसौ नै छयालीस । हिवै बादर परिणत खंध, अनंत प्रदेशिक नां कथंद ।। दश प्रदेशिक खंधे वर्णादिक नां ५१६ भांगा नों यन्त्र-- २३७ दश प्रदेशिक खंधे वर्ण नां भांगा २३७ कहै छ एक संयोगे ५ भांगा पूर्ववत द्विक संयोगे ४० भांगा पूर्ववत त्रिक संयोगे ८० भांगा पूर्ववत चतुष्क संयोगे ८० भांगा पूर्ववत पंच संयोगे ३२ भांगा। भांगा ३१ पूर्वे कह्या तेहिज, हिवै बत्तीसमों भांगो लिखिय छै कालगा ३ नीलगा ३ लोहियगा ३ हालिद्दगा ३ सुक्किलगा ३ गंध नां भांगा ६ पूर्ववत रस नां भांगा २३७ पूर्ववत स्पर्श नां भांगा ३६ पूर्ववत एवं दस प्रदेशिक खंध नै विषे सर्व भांगा ५१६ । इम संख्यात प्रदेशिक, असंख्यात प्रदेशिक तथा सूक्ष्म परिणत अनंत प्रदेशिक ए पिण कहिवा । हिवै बादर भाव परिणत अनंत प्रदेशिक खंध नै वर्ण, गंध रस नां भांगा पूठली पर कहिवा । स्पर्श नां भांगा विशेष कहै छै - बादरपरिणत अनंत प्रदेशिक खंधे स्पर्श ना १२९६ भांगा४००. बादर परिणत हे भगवान ! अनंत प्रदेशियो खंध जान । तिण में वर्ण किता कहिवाय, गंध रस फर्श किता पाय ? ४०१. इम शतक अठारमा मांय, जिम आख्यं इम कहिवाय । जाव कदाचित अठ फास, एतला लगै कहिवू विमास ।। ४०२. इहां वर्ण गंध रस नां भंग, दश प्रदेशिक जिम चंग । वर्ण नां दोयसौ – सैंतीस, गंध नां षट भंगा जगीस ।। ४०३. रस नां दोयसौ सैंतीस, हिवे फर्श नां भांगा कहीस । फर्श नां बारै सौ छर्ने थाय, तके सांभलजो चित ल्याय ।। सर्व कर्कश सर्व गुरु संघाते ४ भांगा४०४. जो च्यार फर्श तिण में होय, तो सर्व कर्कश फर्श सुजोय । सर्व गुरु सर्व शीत पाय, सर्व निद्ध ए धुर भंग थाय ।। ४०५. सगला प्रदेश कर्कश जान, तिके सर्व गुरु पहिछान । तिके सर्व शीत थी कहीज, तिके सर्व लुक्ख भंग बीज ।। ४०६. सर्व कर्कश सहु गुरु जान, सर्व उष्ण सर्व निद्ध मान । सर्व कर्कश सह गुरु देख, सर्व उष्ण सर्व लक्ख पेख ।। ४००. बायरपरिणए णं भंते ! अणंतपएसिए खंधे कति वण्णे? ४०१. एवं जहा अट्ठारसमसए (१८॥११७) जाव सिय अट्ट फासे पण्णत्ते। ४०२. वण्ण-गंध-रसा जहा दसपएसियस्स । ४०४. जइ चउफासे ? १. सब्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे सीए सव्वे निद्धे, ४०५. २. सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे सीए सव्वे लुक्खे, ४०६. ३. सव्वे कक्खडे सब्वे गरुए सब्वे उसिणे सव्वे निद्धे, ४. सव्वे कक्खड़े सव्वे गरुए सव्वे उसिणे सब्वे लुक्खे, श० २०, उ०५, ढा० ४०२ २९५ Jain Education Intemational ma For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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