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________________ ३४०. २२. सिय कालगा य नीलए य लोहियगा य हालिद्दगा य सुक्किलए य, ३४१. २३. सिय कालगा य नीलगा य लोहियगे य हालिद्दए य सुक्किलए य, ३४२. २४. सिय कालगा य नीलगा य लोहियगे य हालिद्दए य सुक्किलगा य, ३४३. २५. सिय कालगा य नीलगा य लोहियगे य हालिद्दगा य सुक्किलए य, ३४४. २६. सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य हालिद्दए य सुक्किलए य, ३४५. एए पंचसंजोएणं छव्वीसं भंगा भवंति, ३४६,३४७. एवमेव सपुवावरेणं एक्कग-दुयग-तियग चउक्कग-पंचगसंजोएहिं दो एक्कतीसं भंगसया भवंति। ३४८. गंधा जहा सत्तपएसियस्स । ३४०. कदा कृष्ण बहु वचनेह, नील इक वच इक नभ लेह । लाल पील बहु वच होय, सूक्किल इक वचने अवलोय ।। ३४१. कदा कृष्ण नील बहु जान, लाल पील सुक्किल इक मान । ए भंग तेवीसमों पाय, हिव चउवीसमों कहिवाय ॥ ३४२. कदा कृष्ण नील बहु जाण, लाल पील एक वच माण। सुक्किल बहु वच बहु नभ मांय, एभंग चउवीसमों पाय ।। ३४३. कदा कृष्ण नील बहु होय, लाल इक वचने अवलोय । पीलो बहु वच बहु नभ मांय, धवलो इक वच इक नभ पाय ।। ३४४. कदा कृष्ण बहु वचनेह, नील लाल बहु वच लेह । पीलो सुक्किल एक वच थाय, ए भंग छबीसमों पाय ।। ३४५. ए पंच संयोगे पिछाण, षटवीस भांगा इम जाण । बुद्धिवंत गुणीजन सार, वर लीजो न्याय विचार ।। पंच वर्णपणां नै विर्षे बत्तीस भांगा माहिला सोलमों भांगो १, चउवीसमों २, अठावीसमों ३, अन छहला ३, तेतीसमों १, इकतीसमों २, बतीसमों ३--ए छव भांगा वर्जी शेष छब्बीस भांगा हुवै। ३४६. एक संयोगे भंग पंच, द्विक संयोग चालीस संच। त्रिक संयोगे अस्सी कहाय, चउक्क संयोगे अस्सी थाय ।। ३४७. पंच संयोगे भांगा छावीस, सर्व दोय सौ नै इकतीस । ___पंच वर्ण तणां पहिछाण, ए भंगा नी संख्या जाण ।। ३४८. गंध नां इक संयोग दोय, द्विकसंयोगे चिहुं अवलोय । जिम सप्त प्रदेशिक खंध, तिम गंध नां भांगा प्रबंध ।। ३४९. रस नां भांगा अवलोय, जिम एह वर्ण नां जोय । आख्या तिम कहिवा जगीस, एतलै दोयसौ इकतीस ।। ३५०. फर्श नां भांगा षट तीस, चिहं प्रदेशिक जिम दीस । सर्व संख्या पांचसौ च्यार, अष्ट प्रदेशिक नां धार ।। अष्टप्रदेशिक खंधे वर्णादिक नां ५०४ भांगा नों यंत्र२३१ अष्टप्रदेशिक खंधे वर्ण नां २३१ भांगा ५ एक संयोगे ५ भांगा पूर्ववत ४० द्विकसंयोगे ४० भांगा पूर्ववत ८० त्रिकसंयोगे ८० भांगा पूर्ववत ८० चतुष्कसंयोगे ८० भांगा कहै छ १ कालए १ नीलए १ लोहियए १ हालिद्दए १ २ कालए १ नीलए १ लोहियए १ हालिद्दगा ३ ३ कालए 1 नीलए १ लोहियगा ३ हालिद्दए १ ४ कालए १ नीलए १ लोहियगा ३ हालिद्दगा ३ ५ कालए १ नीलगा ३ लोहियए १ हालिद्दए १ ६ कालए १ नीलगा ३ लोहियए १ हालिद्दगा ३ ७ कालए १ नीलगा ३ लोहियगा ३ हालिद्दए १ ८ कालए १ नीलगा ३ लोहियगा ३ हालिद्दगा ३ ए कृष्ण एक वचन संघाते ८ भांगा कहा। ३४९. रसा जहा एयस्स चेव वण्णा । ३५०. फासा जहा चउप्पएसियस्स। (श० २०१३३) श• २०, उ• ५, ढा. ४०२ २८९ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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