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२८०. कदा कृष्ण बहु वचनेह, नील बह वच बह नभ जेह ।
लाल पोल एक वच कहिये, ए भंग तेरमों लहिये ।। २८१. कदा कृष्ण बहु वच लेख,
नील बहु वच बहु नभ पेख । लाल इक वच इक नभ कहिये,
पीलो बहु वच बहु नभ लहियै ।। २८२. कदा कृष्ण बहु वच जोय, नील बहु वच बहु नभ होय ।
लाल बहु वच बहु नभ मांय, पीलो इक वच इक नभ पाय ।। २८३. ए चउक्क संयोगे देख, तिण रा भांगा पनर सुपेख ।
धुर च्यार वर्ण कहिवाय, तिण में शुक्ल वर्ण कह्यो नांय ।। हिवं प्रथम चतुष्कयोगिक १५ भांगा अंक करी देखाई छ
२८२. सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य हालिद्दए,
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२८४. कृष्ण नील लाल सुक्किल जोय, तिणरा भंग पनर अवलोय ।
बीजो चउक्कसंयोगिक न्हाल, तिणमें पील वर्ण दियो टाल ।। २८५. कृष्ण नील पील सुक्किल संग, इक वच बहु वच पनर भंग।
तीजो चउक्कसंयोगिक लहिये, तिणमें लाल वर्ण नहीं कहिये ।। २८६. कृष्ण लाल पील सुक्किल साथ, भणवा भांगा पनर विख्यात ।
चउथो चउक्कसंयोग पिछाणो, तिणमें नील वर्ण मत आणो। २८७. नील लाल पील सुक्किल जाण, तिणरा भांगा पनरै पिछाण।
चउक्कसंयोग पंचम एह, तिणमें कृष्ण वर्ण टालेह ।। २८४ भगवती जोड़
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