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________________ सप्तप्रदेशिक स्कन्ध में वर्णादि भंग२६४. सप्त प्रदेशिक खंध जान, तिणमें वर्ण किता भगवान ? जिम पंच प्रदेशिक ख्यात, जाव च्यार फर्श अवदात ।। २६५. जो एक वर्ण तिणमें होय, इम एक बे वर्ण नां जोय । तीन वर्ण तणां भंग सोय, षट प्रदेशिक जिम होय ।। २६४. सत्तपएसिए णं भंते ! खंधे कतिवण्णे ? जहा पंचपएसिए जाव सिय चउफासे पण्णत्ते । २६५. जइ एगवण्णे ? एवं एगवण्ण-दुवण्ण-तिवण्णा जहा छप्पएसियस्स। २६७. जइ चउवण्णे ? १. सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिद्दए य, २६८, २. सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिद्दगा २६९. ३. सिय कालए य नीलए य लोहियगा य हालिद्दए २७०, एवमेते चउक्कगसंजोगणं पन्नरस भंगा भाणियव्वा जाव सोरठा २६६. इक संयोगे पंच, द्विक संयोगे पूर्ववत । भंग चालीस सुसंच, त्रिक संयोगे व असी ।। चतुष्कयोगिक ७५ भांगा ४ भांगा कृष्ण नील एक वचन संघाते कहै छ२६७. *जो च्यार वर्ण तिणमें होय, कदा कृष्ण नील अवलोय । __ लाल पील चिहुं वच एक, ए प्रथम भंग सूविशेख ।। २६८. कदा कृष्ण नील लाल जान, तीन इक वचने करि मान । पीलो बहु वच बहु नभ मांय, ए द्वितीय भंग कहिवाय ।। २६९. कदा कृष्ण नील वच एक, लाल बहु वच बहु नभ पेख । पीलो इक वचने करि होय, ए तृतीय भंग अवलोय ।। २७०. इम ए चउक्क संयोगे सुचंग, भणवा इहां पनरै भंग। जाव शब्द कही पाठ मांहि, चरम भांगो बतायो ताहि ।। २७१. कदा कृष्ण नील वच एक, लाल बहु वच बहु नभ पेख । पीलो बहु वच बहु नभ मांय, ए तुर्य भंग कहिवाय ।। ४ भांगा कृष्ण एक वचन नील बहु वचन संघाते कहै छ२७२. कदा कृष्ण एक वच थाय, नील बह वच बहु नभ मांय । लाल पील एक वचनेह, ए पंचमो भांगो कहेह ।। २७३. कदा कृष्ण एक वच जोय, नील बहु वच बहु नभ होय । लाल इक वचने करि थाय, पीलो बहु वच बहु नभ मांय ।। २७४. कदा कृष्ण एक वच देख, नील बहु वच बहु नभ पेख । लाल बहु वच बहु नभ मांय, पीलो इक बचने कहिवाय ।। २७५. कदा कृष्ण एक वच जोय, नील बहु वच बहु नभ होय । लाल बहु वच बहु नभ मांय, पीलो बहु वच बहु नभ थाय ।। हिवै कृष्ण बह वचन संघाते बाकी शेष भांगा कहै छै तिण में ९,१०,११,१२ मों-ए ४ भांगा कृष्ण बहु वचन अनैं नील एक वचन अनै आगला तेरमा थी शेष भांगा कृष्ण बहु वचन अनै नील बहु वचन छ, ते हिवं नवमा भांगा थी कहै छ२७६. कदा कृष्ण बहु वच पाय, तिको बहु नभ प्रदेश माय । नील लाल पील वच एक, रह्या इक नभ मांहि विशेख ।। २७७. कदा कृष्ण बहु वच जेह, नील लाल एक वचनेह । पीलो बह वच बहु नभ मांय, ए भंग दशम कहिवाय ।। २७८. कदा कृष्ण बहु वच देख, नील इक वचने करि पेख । लाल बहु वच बहु नभ मांय, पीलो इक वच इक नभ थाय ।। २७९. कदा कृष्ण बहु वच जान, नील इक वच इक नभ मान । लाल बहु बच बहु नभ मांय, पीलो बहु वच बहु नभ पाय ।। * लय : म्हारी सासू रो नाम छ फली श० २०, उ०५, ढा० ४०२ २८३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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