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________________ पंचयोगिक १६६ भांगा २५२. जो पंच वर्ण तिणमें होय, कदा कृष्ण नील लाल जोय । पील धवल पांच वच एक पुर भांगो एह संपेख || २५३. कदा कृष्ण नील लाल पील, चिहूं इक वचनेज समील । सुक्किलगा ते बहु वचनेह, सुक्किल बहु नभ मांहि रहेह || २५४. कदा कृष्ण नील लाल एक, पीलो बहु वचने करि पेख । सुक्किल इक बच ए भंग तोर्ज, पीलो बहु नभ मांहि रहीजे ॥ २५५. कदा कृष्ण नील वच एक, लाल बहु वचने करि देख । पीलो सुक्किल एक वचनेह, लाल बहु नभ मांहि रहेह ।। २५६. कदा कृष्ण एक बच होय, नील वह वचने करि जोय । लाल पील मुक्किल बच एक. ए पंचमो भांगो देख ॥ २५७. कदा कृष्ण बहु वच थाय, शेष च्यारूं एक वच पाय । ए षष्टम भंग कहाय, कृष्ण रह्यो बहु नभ मांय || २५८. इम ए पंच संयोगे विचार, षट भांगा एम उचार | हि सर्व भांगा अवलोव पांचू वर्ण नां एता जोय || २५९ इकसंयोग पंच जगीस द्विकसंयोगे भंग चालीस । त्रिसंयोगे अस्सी होय, चउक्कसंयोगे पचपन जोय || २६०. पंचसंयोगे पट भंग, सर्व इकसौ छांसी बंग षट प्रदेशिया नां ख्यात, वर्ण नां भंग नो अवदात || २६१. गंध नां इकसंयोग दोय, द्विकसंयोग च्यार सुजोय । इम षट भांगा उच्चरिवा, पंच प्रदेशिया जिम करिवा ॥ २६२. रस नां एकसो नैं छयांसी, वर्ण नीं परं करिया विमासी । फर्श नां षट तीस कहाय, च्यार प्रदेशिया जिम ताय ॥ २६३. षट प्रदेशिको एम, वर्णादिक ना भंग तेम ब्यारसी नवदे भंग आया Jain Education International जिन वचन थकी अभिलाख्या || छह प्रदेशिक खंधे वर्णादिक नां ४१४ मांगा नों यंत्र - १८६ छह प्रदेशी खंधे वर्ण नां भांगा १५६ १५ एक संयोगे भांगा ५ पूर्ववत ४० द्विकसंयोगे भांगा ४० पूर्ववत ८० त्रिकसंयोगे भांगा ८० ते कहे छे कृष्ण एक वचने करि ४ भांगा कहै छं १ का ११ मोहिए १ २ काल १ नीलए मोहगा ३ कालए १ नीलगा ३ लोहियए १ ४ कालए १ नीलगा ३ लोहियगा ३ २५२. जइ पंचवण्णे ? १. सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिए य, सुक्किलए य, २५३ २. सिय कालएव नीलए य लोहियएव हालिइए य सुक्किलगाय २५४. ३. सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिद्दगा य लिए २५५. ४. सिय कालए य नीलए य लोहियगा य हालिए य मुक्किए व २५६. ५. सिय कालए य नीलगाय लोहियए य हालिए य सुक्किलए य, २५७. ६. सिय कालगा य नीलए य लोहियए य हालिए सुक्किए व २५८-२६०. एवं एए छन्भंगा भाणियव्वा, एवमेते सब्वे वि एक्कग दुयग-तियग- चउक्कग-पंचगसंजोगेसु छासीय भंगसयं भवति । २६१. गंधा जहा पंचपएसियस्स । २६२. रसा जहा एयस्सेव वण्णा । फासा जहा चउप्पएसिस्स । (श० २०,३१) For Private & Personal Use Only श० २०, उ०५, हाल ४०२ २८१ www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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