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सोरठा
१६२. इक नभ मांहि संगीत, बंध नां दोय प्रदेश जे। शीत, तेहिज इक निद्ध लुक्ष इक ।। धार, खंध नां दोय प्रदेश जे । दोनं उष्ण विचार, तेहिज इक नि लुक्ष इक ।।
एक उष्ण इक १६४. द्वितीय नभे फुन
१६५. * देशा शीता देश उष्ण जाण, देश निद्ध देश लुक्ख माण । धुर बहु वच इक वच तीन, रह्या दोय आकाश में चीन ॥
सोरठा
१६६. इक नभ में निद्ध तीन एक शीत वे उष्ण से द्वितीय प्रदेशे चीन, एक लुक्ष ते शीत छै ।। १६७. अथवा इक नभ मांय, वे निद्ध ते विहं शीत है। द्वितीय प्रदेशे पाय, वे लुक्ख इक शीत उष्ण इक || १६८. "देशा गीता देश उष्ण ताम, देश निद्ध देशा लुक्खा पाम । धुर चरम बहु वच देख, रह्या बे नभ मांहि संपेख || सोरठा
१६९. इक नभ में वे शीत, तेहिज इक नि द्वितीय प्रदेश वदीत, वे लुक्ख शीत
रु
इहा
जह ।
१७० इम ए च्यारू फर्श नां, आख्या सोला भंग । जान सोलमो भंग ते चिहुं पद बहू वच चंग ॥ १७१. जाव शब्द मांहे अर्थ, ग्यारम भंग थी पनरम लग तेहिज कहूं, सांभलिये मित १७२. *देशा शीता देश उष्ण जोय, देशा निद्धा देश लुक्ख होय । बहुवचन प्रथम तृतीयेह, रह्या दोय प्रदेश विषेह || सोरठा
लुक्ष इक उष्ण ते ।।
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१७३. इक नभ में वे शीत तेहिज निद्ध इक लक्ष इक । द्वितीय प्रदेश संगीत, वे निद्ध इक शीत उष्ण इक ।। १७४. "देशा शीता देश उष्ण जोय,
देशा निद्धा देशा लुक्खा होय । पद द्वितीय एक वचनेह रह्या तीन प्रदेश विषेह ॥
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देह ॥
सोरठा
१७५. बे नभ में बे शीत, ते बिहं इक निद्ध एक लुक्ख । तृतीय प्रदेश संगीत, दोय उष्ण ते निद सुख ॥ १७६. "देशा सीता देशा उष्णा देख, देश निद्ध देश लक्ख देख 1 धुर वे पद बिहं वचनेह रह्या दोय प्रदेश विषेह ||
*लय : म्हारी सासू रो नाम छँ फूली
भगवती जोड
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१६५. ९. देसा सीया देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे,
१०. एवं एएच उफासे मोलस भंगा भाणियव्वा जाव
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