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________________ ५५. एवं एए दस तियासंजोगा। ५६. जइ एगगंधे ? सिय सुब्भिगंधे, सिय दुब्भिगंधे । ५७-५९. जइ दुगंधे ? सुब्भिगंधे य दुब्भिगंधे य भंगा ३ । ६०. रसा जहा वण्णा । ६१. जइ दुफासे? सिय सीए य निद्धे य, एवं जहेव दुपए सियस्स तहेव चत्तारि भंगा। ६२. जइ तिफासे ? १. सव्वे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे, ५५. त्रिकयोगिक ए दश देख, द्विकयोगिक तीस संपेख : इकयोगे पंच जगीस, वर्ण नां भंग पैतालीस ।। गंध नां ५ भांगा५६. जो एक गंध तिणमें चीन, तो कदा सुगंध प्रदेश ह तीन । कदा दुर्गध तीनई होय, इकयोगिक भंग ए दोय ।। द्विकयोगे गंध ना ३ भांगा - ५७. जो गंध हवै तिणमें दोय, तो सुगंध एक वच होय । दुर्गध एक वचनेह, न्याय पूर्वली परि लेह ।। ५८. तथा सुगंध एक वच होय, बहु वच दुर्गंध प्रदेश दोय । ते खंध नां दोनं प्रदेश, रह्या दोय प्रदेश अशेष ।। ५९. बहु वच सुगंध दोय प्रदेश, रूंध्या दोय प्रदेश विशेष । इक वच दुर्गध एक प्रदेश, तीन प्रदेश में त्रिहं शेष ।। रस ना ४५ भांगा-- ६०. वर्ण जिम रस नां पैतालीस, इकयोगे पंच जगीस। द्विकयोगे तीस विचार, त्रिकयोगे दश अवधार ।। फर्श ना २५ भांगा६१. जो दोय फर्श तिणमें होय, तो कदा शीत निद्ध बिहुं जोय । द्विप्रदेशक नां कह्या जेम, कहिवा च्यारूं भांगाधर पेम ।। त्रिकयोगे फर्श ना १२ भांगा -- ६२. जो तीन फर्श तिणमें होय, तो सर्व शीत फर्श अवलोय । देश निद्ध ते एक प्रदेश, देश इक वच लक्ष विशेष ।। सोरठा ६३. निद्ध एक प्रदेश, लक्ष दोय प्रदेश जे। ते बिहं इक नभ लेश, इम निद्ध लुक्ष बिहं एक वच ।। ६४. *तथा सगलाइ शीत प्रत्यक्ष, देश निद्ध अने देशा लुक्ष । ए त्रिप्रदेशिक सुविशेष, रह्यो तीन आकाश प्रदेश ।। ६५. तथा सगलाई शीतज होय, बह देश निद्ध अवलोय । एक देश लुक्ष सुविचार, ए तृतीय भंग अवधार ।। सर्व उष्ण संघाते ३ भांगा--- ६६. सर्व उष्ण देश निद्ध देख, देश लुक्ष बिहं वच एक । शीत संघाते त्रिण भंग ख्यात, तिम कहिवा उष्ण संघात।। ६७. सर्व निद्ध देश एक शीत, एक देश उष्ण सुवदीत । इम भांगा तीनज भणवा, इक वच बहु वच करि इम थुणवा ।। ६८. सर्व लक्ष देश एक शीत, एक देश है उष्ण वदीत । इम भांगा तीनज करिवा, पूर्वली परै उच्चरिवा ।। च्यार फर्श नां ९ भांगा ६९. देश शीत देश उष्ण जाण, देश निद्ध देश लक्ष माण। च्यारूं एक वचन कहिवाय, हिव सुणजो तेहनों न्याय ।। *लय : म्हारी सासू रो नाम छ फूली ६४. २. सवे सीए देसे निद्धे देसा लुक्खा, ६५. ३. सव्वे सीए देसा निद्धा देसे लुक्खे, ६६. सव्वे उसिण देसे निद्धं देसे लुक्खे, एत्थ वि भंगा तिणि, ६७. सव्वे निढे देसे सीए देसे उसिणे भंगा तिपिण, ६८. सब्वे लुक्खे देसे सीए देसे उसिणे भंगा तिण्णि । ६९. जइ च उफासे ? १. देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे, श०२०, उ०५, ढा०४०२ २६१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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