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________________ ततर इवा, ५३. अथवा मार्ग नाम छै, पंथ रूप थी जाण । ५३. मग्गे इ वा, विमुहे इ वा, अथवा नाम विमुख वलि, मुखादि रहित पिछाण ।। 'मग्गे' त्ति पथिरूपत्वान्मार्गः, "विमुहे' त्ति मुखस्यआदेरभावाद्विमुखम् (वृ०प० ७७६) ५४. अई नाम इण कारण, इण करि गमन करेह । ५४. अट्टे इ वा, द्वितीय अर्थ अट्ट' नं कियो, इण करि अतिक्रमेह ।। 'अद्दे' त्ति अद्यते-गम्यते अट्टयते वा-अतिक्रम्यतेऽनेनेत्यईः अट्टो वा (वृ० प० ७७६) ५५. विशिष्ट अई अछै तिको, व्यई नाम इण न्याय । ५५. वियट्टे इ वा, विशिष्ट अट्ट तिण कारणे, द्वितीय अर्थ व्यट्ट' पाय ।। 'वियद्दे' त्ति स एव विशिष्टो व्य> व्यट्टो वा, (वृ० प० ७७६) ५६. अथवा नाम आधार छै, आधार थीज कहेह । ५६. आधारे इ वा, वोमे इ वा, विशेष करिक अवन थी, व्योम नाम छै एह ।। 'आधारे' त्ति आधारणादाधारः 'वोमे' त्ति विशेषेणावनाद्व्योम, (वृ० प० ७७६) ५७. अथवा भाजन नाम छै, विश्व नो भाजन एह । ५७. भायणे इ वा, अंतलिक्खे इ वा, __ जसु मध्य अंतर देखवू, अंतरिक्ष नामेह ।। 'भायणे' त्ति भाजनाद-विश्वस्याश्रयणाभााजनम्, अंतलिक्खे' त्ति अन्तः-मध्ये ईक्षा-दर्शनं यस्य तदन्तरीक्षं, (वृ० ५०७७६) ५८. अथवा नामज स्याम छ, स्याम वर्ण दीसेह। ५८. सामे इ वा, ओवासंतरे इ वा, अवकाश रूप अंतर अछ, अवकाशंतर एह ॥ 'सामे' त्ति श्यामवर्णत्वात् श्यामम् 'ओवासंतरे' त्ति अवकाशरूपमन्तरं न विशेषादिरूपमित्यवकाशान्तरम् (वृ० ५०७७६) ५९. अथवा नाम अगम वलि, गमन क्रिया करि रहीत । ५९. अगमे इ वा, फलिहे इ वा, निर्मल फटिक तणी परै, फलिह नाम संगीत ।। 'अगमे' त्ति गमनक्रियारहितत्वेनागमं 'फलिहि' त्ति स्फटिकमिवाच्छत्वात् स्फटिकम् (वृ० ५० ७७६) ६०. अथवा नाम अनंत छै, अंत नहीं छै तास । ६०. अणंते इ वा, जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते __ अन्य वलि तथा प्रकार नां, आगास नाम विमास ।। आगासत्थिकायस्स अभिवयणा। (श० २०१६) 'अणंते' ति अन्तजितत्वात् । (वृ०प०७७६) ___ सोरठा ६१. 'ए आकाशास्तिकाय, नाम कह्या छै तेहनां । अपर नाम पेक्षाय, सह ठामे वा शब्द छै ।। ६२.तिम अष्टम शत वाय, षष्टमद्देशक नै विषे । ६२. भगवती ८।२४५ श्रमण माण नै ताय, दान दियां ह्व निर्जरा ।। ६३. वा शब्द छै तिण ठाम, ते अन्य नाम अपेक्षया । पिण श्रावक नों नाम, माहण शब्द न सर्वथा ॥' (ज० स०) ६४. *शत वीसम द्वितीय देश ए, त्रिण सय निनाणमीं ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' हरष विशाल ।। १,२. अंगसुत्ताणि भाग २ श० २०१६ में अट्टे और वियट्टे --इन शब्दों को मूलपाठ में रखा गया है । वहां अद्दे और वियद्दे को पाठांतर में लिया है। * लय : मुनिवर गेहणा कठा सूं लाविया श०२०, उ०२, ढाल ३९९ २५१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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