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२४. तृतीय भंग के जंत, नहिं जाणे फर्शादि करि ।
तास अगोचर हुँत, पिण देखै चक्षू करी ।। २५. तुर्य भंग के जंत, नहिं जाणे फर्शादि करि ।
नेत्रे नहिं देखंत, चक्षु फर्श अगोचरे ।।
२४. तथाऽन्यो न जानाति स्पर्शाद्यगोचरत्वात् पश्यति चक्षुषेति तृतीयः ।
(वृ० प० ७५६) २५. तथाऽन्यो न जानाति न पश्यति चाविषयत्वादिति चतुर्थः ।
(वृ० ५० ७५६)
२६. छद्मस्थाधिकाराच्छद्मस्थविशेषभूताधोऽवधिकपरमाधोऽवधिकसूत्रे ।
(वृ० प० ७५६) २७. आहोहिए णं भंते ! मणुस्से परमाणुपोग्गलं कि
जाणति-पासति ? उदाहु न जाणति न पासति ? जहा छउमत्थे एवं आहोहिए वि
२८. जाव अणंतपएसियं ।
(श० १८।१७)
२९. परमाहोहिए णं भंते ! मणुस्से परमाणु पोग्गल जं
समयं जाणति तं समयं पासति ?
३०. ज समयं पासति तं समयं जाणति ? नो इणठे समठे।
(श० १८११७८)
२६. छमस्थ नां अधिकार थी, छद्मस्थ नोंज विशेख ।
आधोऽवधिक तणी वली, परम अवधि - पेख ।। २७. *अल्प अवधिवंत मनुष्य जै,
परमाणु हो प्रति जाणे भदंत कै ? जिम छद्मस्थ तणों कह्यो,
तिम कहिवो हो आधोअवधिकवंत कै । २८. यावत अनंतप्रदेशिया,
जिम भाख्या हो छद्मस्थ नां सोय के। च्यार भांगा चावा सही,
तिम कहिवो हो आधोअवधिक जोय के ।। २९. परम अवधिवंत मनुष्य जे,
परमाणु हो प्रति हे भगवंत ! कै। जेह समय जाणे सही,
ते समये हो स्यूं देखवो हुँत के ? ३०. जेह समय देखै सही,
तिण समये हो परमाणु जाणंत के ? जिन कहै अर्थ समर्थ नहीं,
वलि पूछ हो गोतम धर खंत कै ।। ३१. किण अर्थे प्रभु ! इम कह्यो ?
परमावधिवंत मनुष्य विचार के । जाणे जे समय परमाणुओ,
नहि देखै हो ते समय मझार के ? ३२. जे समय देख परमाणु प्रत,
नहि जाणे हो ते समय मझार के ? श्री जिन भाखै गोयमा !
हिव कहियै हो तसु न्याय विचार के ।। ३३. ज्ञान उपयोग सागार छै,
__ वलि दर्शण हो कहिये अणागार के। ज्ञान विशेषग्राही अछ,
___ सामान्यज हो ग्रहण दर्शन सार के ।। ३४. इम माहोमांहि विरोध थी,
इक समये हो दोनई नहि कोय के। तिण अर्थे यावत तिको,
नहि जाणे होते समये सोय कै ।। *लय : नींदडली हो बेरण
३१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-परमाहोहिए णं
मणुस्से परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणति नो तं समयं पासति ?
३२. ज समयं पासति नो तं समयं जाणति ? गोयमा !
३३. सागारे से नाणे भवइ, अणागारे से सणे भवइ ।
'सागारे से नाणे भवति' त्ति 'साकार' विशेषग्रहणस्वरूपं ।
(वृ० प० ७५६)
३४,३५. से तेणठेणं जाव (सं. पा.) नो तं समय जाणति । एवं जाव अणंतपदेसियं ।।
(श० १८१७९) 'से' तस्य परमाधोऽवधिकस्य तद्वा ज्ञानं भवति,
श० १८, उ० ८, ढा० ३८३ १५३
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