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१७. नवरं वावहारियनयस्स नीलए सुयपिच्छे,
१८. नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे जाव अट्ठफासे पण्णत्ते
१९. एवं एएणं अभिलावेणं
२०. लोहिया मंजिट्ठिया, पीतिया हालिद्दा, सुक्किलए
संखे, २१. सुब्भिगंधे कोठे, दुब्भिगंधे मयगसरीरे,
२२. तित्ते निबे, कडया सुंठी, कसाए कविढे,
२३. अंबा अंबिलिया, महुरे खंडे,
२४. कक्खडे वइरे, मउए नवणीए, गरुए अए,
१७. नवरं नय व्यवहार रे, तास मते करी।
नील वर्ण सुक-पंख छ ए॥ १८. निश्चै नय करि तेह रे, शेष तिमज सही ।
वर्णादिक सह पामियै ए ।। १९. ते इण आलावेण रे, इम कहियो अछै ।
आगल तेहिज धामियै ए ।। २०. लोहित वर्ण मजीठ रे, हलद पीली कही।
धवले वर्णे संख छै ए ।। २१. सुरभिगंध छै कोठ रे, दुरभिगंध वली।
मृतक नों तनु अशुभ छ ए॥ २२. तिक्त रसे जे नींब रे, कडवी संठ छै ।
तूयर कविठ कषाय छै ए॥ २३. अंबिल खाटी ख्यात रे, कहिये आंबली ।
मधुर रसे करि खांड छै ए॥ २४. कर्कश फर्शे वज्र रे, मृदु नवनीत है।
गुरुक स्पर्श लोह छै ए॥ २५. लघु ते हलवो फास रे, उलुकपत्र तिको।
बूर वणस्सइ पत्र छै ए॥ २६. शीत स्पर्श हिम रे, ऊन्ही अग्नि छ ।
स्निग्ध तेल कहीजिये ए।। २७. भसम राख भगवंत ! रे, पूछयां जिन कहै।
नय बे इहां लहीजिये ए ।। २८. निश्चै नय व्यवहार रे, व्यवहारिक नये।
लक्खी राखज जाणिय ए।। २९. निश्चै नय वर्ण पंच रे, यावत राख में।
स्पर्श आठ पिछाणियै ए॥ ३०. प्रभु | परमाणु मांहि रे, कितला वर्ण छ ।
गंध रस फर्श किता अछ ए? ३१. जिन भाखै वर्ण एक रे, गंध पिण एक छै ।
रस इक फुन बे फर्श छै ए॥
२५. लहुए उलुयपत्ते,
२६. सीए हिमे, उसिणे अगणिकाए, णिद्धे तेल्ले ।
(श० १८।१०९) २७. छारिया णं भंते ! –पुच्छा।
गोयमा ! एत्थ दो नया भवंति, २८. नेच्छइयनए य वावहारियनए य । वावहारियनयस्स
लुक्खा छारिया, २९. नेच्छइयनयस्स पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पण्णत्ता ।
(श० १८११०) ३०. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कतिवण्णे जाव कतिफासे
पण्णत्ते ? ३१. गोयमा ! एगवण्णे, एगगंधे, एगरसे, दुफासे पण्णत्ते।
(श० १८११११)
सोरठा ३२. विकल्प भांगा संच, वर्ण विषे जे पंच है।
बे गंध रस नां पंच, फर्श विषे विकल्प चिउं ।।
वा०-स्निग्ध, रूक्ष, शीत, उष्ण-ए च्यार स्पर्श माहे अन्यतर अविरुद्ध स्पर्श दो युक्त इत्यर्थः। ३३. विकल्प इहां जु च्यार, शीत-स्निग्ध रु शीत-लुक्ख ।
उष्ण-निद्ध अवधार, उष्ण-रूक्ष ए भंग चिउं ।।
३२. 'परमाणुपोग्गले ण' मित्यादि, इह च वर्णगन्धरसेषु
पञ्च द्वौ पञ्च च विकल्पाः (वृ० प०७४८) वा०-'दुफासे' त्ति स्निग्धरूक्षशीतोष्णस्पर्शानामन्यतरा
विरुद्धस्पर्शद्वययुक्त इत्यर्थः (वृ०प०७४८) ३३. इह च चत्वारो विकल्पाः शीतस्निग्धयोः शीतरूक्षयो उष्णस्निग्धयोः उष्णरूक्षयोश्चसम्बन्धादिति ।
(वृ०प०७४८) ३४. दुपएसिए णं भंते ! खंधे कतिवण्णे जाव कतिफासे
पण्णत्ते ?
३४. *दोय प्रदेशिक खंध रे, हे प्रभु ! तेह विषे ।
वर्णादिक किता कह्या ए? * बेकर जोड़ी ताम रे
श०१८, उ०६, ढाल ३७७ १५७
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