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________________ १७. गोतम कहै भगवंत जी ! अलंकृत विभूषित अंग हो प्रभुजी ! प्रासादनीक पुरुष जिको, जाव प्रतिरूप चंग हो प्रभुजी ! १८. तिहां जेह पुरुष अलंकृत नहीं, नहीं छै विभूष अनूप हो प्रभुजी ! प्रासादनीक नहीं तिको, जाव नहीं प्रतिरूप हो प्रभुजी ! १९. तिण अर्थे करि गोयमा ! जाव नहीं प्रतिरूप हो गोयम जी ! द्विविध मनुष्य तणी परै, असुरकुमार तद्रूप हो गोयम जी ! २०. हे प्रभु ! नागकुमार बे, इक नागकुमार आवास हो प्रभुजी! एवं चेव कहीजिये, असुर तणी पर तास हो गोयम जी ! २१. इम जाव थणिय कुमार है, वाणव्यंतर विख्यात हो गोयम जी! ज्योतिषी नै वैमानिक सुरा, एवं चेव आख्यात हो गोयम जी! १७. भगवं ! तत्थ णं जे से पुरिसे अलंकियविभुसिए से __णं पुरिसे पासादीए जाव पडिरूवे । १८. तत्थ णं जे से पुरिसे अणलंकियविभूसिए से णं पुरिसे नो पासादीए जाव नो पडिरूवे । १९. से तेणठेणं जाव नो पडिरूवे। (श० १८९८) २०. दो भंते ! नागकुमारा देवा एगंसि नागकुमारा वासंसि ? एवं चेव २१. जाव थणियकुमारा। वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया एवं चेव। (श० १८१९९) सोरठा २२. अनंतरे आख्यात, विशेष असरादिक तणों। विशेष अधिकारात, कहियै छै हिव आगल ।। २३. *हे भगवंत ! बे नारकी, इक नरकावासा मांय हो प्रभुजी ! __नारकपणे ते ऊपनां, पूर्व पाप पसाय हो प्रभुजी ! २४. एक नारकी छै तिहां, महाकर्मवंत अत्यंत हो प्रभुजी ! यावत ते निश्चै करी, छै महावेदनावंत हो प्रभुजी ! २५. एक नारकी नरक में, अल्प थोड़ा कर्मवंत हो प्रभुजी ! जाव अल्प तसु वेदना, महा अपेक्षाय कहंत हो प्रभुजी ! २६. ते किम ए भगवंत जी? इम इति प्रश्न आख्यात हो प्रभुजी ! __ श्री जिन भाखै नारकी, दोय प्रकार विख्यात हो प्रभुजी ! २७. माईमिथ्यादष्टि ऊपनां, प्रथम भेद ए पाय हो गोयम जी ! ___अमाईसमद ष्टि ऊपना, द्वितीय भेद कहाय हो गोयम जी! २८. तिहां माईमिथ्यादृष्टि जिको, नारक जे उत्पन्न हो गोयम जी! ते अतिमहाकर्मवंत छै यावत, अतिमहा वेदन्न हो गोयम जी ! २९. तिहां अमाईसमदृष्टि जिको, नारक जे उत्पन्न हो गोयम जी! अल्पकर्मवंत छै तिको, जाव अल्प वेदन्न हो गोयम जी ! २२. अनन्तरमसुरकुमारादीनां विशेष उक्तः, अथ विशेषाधिकारादिदमाह (वृ० प० ७४६) २३. दो भते ! नेरइया एगंसि नेरइयावासंसि नेरइयत्ताए उववन्ना। २४. तत्थ णं एगे नेरइए महाकम्मतराए चेव जाव (सं० पा०) महावेयणतराए चेव, २५. एगे नेरइए अप्पकम्मतराए चेव, जाव (सं० पा०) अप्पवेयणतराए चेव, २६. से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, २७. मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नगा य, अमायिसम्मदिट्ठिउवव न्नगा य। २८. तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिविउववन्नए नेरइए से णं महाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेव । २९. तत्थ णं जे से अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव । (श० १८१००) ३०. दो भंते ! असुरकुमारा? एवं चेव । एवं एगिदिय विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणिया। (श० १८।१०१) ३०. हे प्रभु ! असुरकुमार बे, एवं चेव पहिछाण हो गोयम जी! इम एकेंद्री विकलेंद्री वरजन, जाव वैमानिक जाण हो गोयमजी! सोरठा ३१. इहां एकेंद्रिय आदि, वर्जी छै इण कारणे । माई-मिथ्या लाधि, अमाई-समदृष्टि नहीं । ३२. अमाई-समदृष्ट, विशेष सम्यक्तवंत ए। तिण कारण इम इष्ट, वर्जी विकलेंद्री भणी ॥ ३३. सास्वादान गुणठाण, विकलेंद्रिय माहे कह्य । वमती सम्यक्त जाण, तिणसू कथन न एहनों। *लय : हूं बलिहारी हो, हूं बलिहारी हो श्री जिनजी री आगन्या ३१,३२. 'एगिदियविलिदियवज्ज' ति इहेकेन्द्रियादि वर्जनमेतेषां मायिमिथ्यादृष्टित्वेनामायिसम्यग्दृष्टिविशेषणस्यायुज्यमानत्वादिति। (व० ५० ७४६) श• १८, उ०५, डा. ३७६ १५३. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003621
Book TitleBhagavati Jod 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages422
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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