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दढपइनो साधू तिण भव मझे ए, घणां वरस केवल प्रज्या पाल । संथारो करे तिहां ए, मोख जासी काटे कर्म जाल ।
आळू करम खै करी ए॥१८॥ जठे जनम-मरण नहीं सर्वथा ए, सासता सुख घणां श्रीकार । त्यां सुखां ने नहीं ओपमा ए, त्यांरो पामै नहि कोई पार ।
एहवा सुख पामसी ए॥१६॥ एहवा सुख गोसाला रो जीव पामसी ए, बीचे विधन घणां छै ताम। बांध्या करम भोगवी ए, छुटेको होसी ताम।
जिणेसर भाखियो ए॥२०॥ ए चरित करचो गोसाला तणों ए, सुतर भगोती रै अणुसार । पनरमा सतक में ए, तिहां पिण जोय लीजो विसतार ।।२१।। संवत अठार छयालै सम ए, काती बिद सातमी रविवार । चोपी गोसाला तणी ए, कीधी खैरवा सहर मझार ।
जिणेसर भाखियो ए॥२२॥
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