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________________ Jain Education International ढाल : ४१ [धर्म आराधियं ग] घणां काल पेहली जोव माहरो ए हूं तो मंखली-पूत गोसाल घातक साधां तणों ए, थे सुणजो सुरत संभाल । गोसालो इम भाषसी ए || १ || पाछे हुई चोबीसी तेह में ए. देहला तीर्थकर महावीर । जद हूं सिष थयो तेहनों ए म्है दिख्या लीधी त्यांरै तीर ॥२॥ त्यांनेईज दुःख है दिया घणां ए, लेम्या मेले कियो लोहीठाण । वले लेस्या थकी ए, दोय साधां नें बाल्या जाण ॥ ३ ॥ म्है पाखंड चलायो अति घणों ए. भगवंत ने परूप्या इंद्रजाल । बले अम्हासी थके ए हूं तीर्थकर बाज्यो ति काल ॥४॥ म्हे महिमा बधारी अति माहरी ए. झूठ बोल्यो मैं विप्रकार। तिहां सिध्य सिपणी तणो ए. भेलो कियो बोहत पिरवार ||५|| हूं आचार्य ने उवकाय तणों ए. प्रतणीक वो वारूंवार | अज कियो अति घणों ए, घणां आंगुण बोल्या मुख फार || ६ || इत्यादिक सगली कही मांड ने ए. पछे खेहले अवसर सल काढ समकत पामी तिहां ए, जद तो काम सिराड़े दियो चाढ ॥७॥ पछे मरने गयो सुर बारमें ए, तिहां थी चवे हुवो मोटो राय । तिहां पिण साधां भणो ए, दुख घणों दियो ताय ||5|| वले सुमंगल नामे अनगार ने ए. हेठो नास्यो रथ फेरपो दो बार। तिण तेजू लेस्या काढनें ए मोने बाले जाले कियो छार || ६ || तिहां भी मरने गयी हूं नरक मातमी एतिहां दुख भोगविया अपार । सातोई नरक में ए हूं छू गयो दोय- दोय बार ॥ १०॥ पर्छ तिर्यच में दुख भोगव्या ए. ते पिण मांडे कही सर्व बात । मिनष रा भव मझे ए, समकत आयो गयो मिथ्यात ।। ११ ।। भवणपती रे मांय । नो भव पाय ।।१२।। देवता हुआ जाय। गयो सुर मांय ।। १३ ।। दस वार चारित है विराधियो ए. गयो तिहां थी हूं नीकली ए. मानव ति पिचारित विराध ने ए जोती पछै चारित आराध ने ए सात बार इणविध संसार में हत्यो ए. तिन घणो विस्तार । मो जिम करजो मती ए. वधारजो आचार्य ने उवकाय नां ए, प्रतणोक मत अंजस कीजो मती ए बले आंगुण मत वले अकीरत करजो मती ए. कीधा मो जिम संसार में ए भ्रमण करोला जद संमण निबंध इम सांभली ए भय आलोए पकिमी ए, प्राछित ले ४३८ भगवती जोड मती संसार | १४ || होयजो कोय । बोलजी सोय ।।१५।। दुख अनंत वार अनंत ।। १६ ।। पामसी तिण ठाम सुध होसी ताम ॥१७॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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