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________________ ढाल : ३९ [कोड़ पूर्व लग पामो साता, मोरा देवी माता जी] इग्यारै सौ जोजन री मेहलायत, ते रतना सेती जड़िया जी। साधपणों सुध जे नर पाल, त्यार पाने पड़िया जी। इण स्वार्थसिध रै चन्द्रवे कांइ, मोती झंबक सोहै जी ।।१।। तस झंबक रै विचलो मोती, चोसठ मण रो जाणी जी। च्यार मोती बले तस पाखतिया, बतोस मण रां बखाणी जी ॥२॥ तेहने पाखतियां अति ही निरमल, सोल मण रा आठ मोती जी। सुन्दरता देखी हियो हरष, वर्धे आंखड़ियां री जोती जी ॥३॥ तस पाखतियां सोल मोती, त्यांमें आठ-आठ मण भारो जी। सोभा बोहत विराजे तेहनी, ते दोठां हरष अपारो जी ॥४।। बतीस मोती तस पाखतियां, त्यांमें च्यार-च्यार मण तोलो जी। ते दीठां अति हियो हरणे, ते मोती घणां अमोलो जी ।।५।। तस पाखतियां चोसठ मोती, ते दोय-दोय मण छ तासो जी। तेज उद्योत करै तिण ठामे, तेहनों घणों प्रकासो जी ॥६॥ त्यां पासे मोती मण-मण रा, एक सौ ने अठावीसो जी। ते दीठां भूख त्रिषा मिट जावै, ते भाष गया जगदीसो जी ॥७॥ दोय सौ नै तेपन मोती, मर्व थई नै मिणिया जी। तिसलानन्दण वीर जिणेसर, केवलग्यानी गिणिया जी ।।८।। बाऊ जोगे मोती आफलनां, तो ही मोती मूल न फट जी। मीठा सब्द गेहर गंभीरा, त्यां मोत्यां मांस ऊठ जी ।।६।। ते सदा काल सासता मोती, त्यांन पवन चलावै जी। मधुर सब्द त्यां मांसू निकले, ते सुर नै घणां सुहावै जी ।।१०।। जाण बतीस विध रा नाटक पड़े छ, छ राग त्यां मांस होवै जी। छतीस रागणी त्यां मांसू नीकले, ते मुर ना हीया मोहै जी ॥११॥ बूर वनसपती पेहल रूई नां, ऐसी ओपमा न्हाली जी।। माखण नै रेसम नां लच्छा, तिण स सेज्या घणी सुहाली जी ।।१२।। तेतीस हजार वर्ष नीकलियां, भूख री मनसा थावे जी। सास ऊंचा थी नीचो मूक, पख तेतीस जावै जी ॥१३।। अवधिग्यान सं नीचो देखे, नरक सातमी हेठो जी। ऊंचो देखे ध्वजा पताका, तिरछो थेटाथेटो जी ॥१४॥ स्वार्थसिध नां सुख भोगवतां, हरखं विसवावीसो जी। त्यां एकधारा लहलीन रहै छै, सुर सागर तेतीसो जी ॥१५॥ तिण ठामे जे जाय ऊपनां, ते सगला एकाऽवतारो जी। ते देव चवी ने मिनषज होवै, मोटा कुल मझारो जी ॥१६।। साधपणों सुध चोखो पालै, इसड़ा मेहलज पावै जो। थोड़ा दिनां में करणी कर ने, चव ने मुगत सिधावै जी ॥१७।। गोसाला री चौपई, ढा.. ३९ ४३५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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