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________________ पेहले देवलोक में सुख भोगवी रे लाल, वले पामसी नर अवतार । उत्तम कुल आय अवतरी रे लाल, वले. लेसी संजम भार ।।२।। रूड़े रीते चारित अराध नै रे लाल, करे तिहां थी काल । देवता होसी तीजा देवलोक में रे लाल, तिहां पामसी भोग विसाल ।।३।। तिहां देव तणां सुख भोगवी रे लाल, बले थित पूरी करे ताय। वले मिनष तणों भव पामसी रे लाल, उत्तम कुल में उपजसी आय ॥४॥ तिहां वाणी मुणसी साधां तणी रे लाल, जब आसी वेराग अतंत । मात-पिता ने पूछ नं रे लाल, चारित लेसी मतवंत ।।५।। तिहां चारित आराधे चोखी तरे रे लाल, करे तिहाथी काल । देवता होसी देवलोक पांचमें रे लाल, तिहां पामसी भोग रसाल ।।६।। तिहां सुख भोगवे देवता तणां रे लाल, वले पामे नर अवतार । तिहां पिण चारित आराधे होसी देवतारे लाल, सातमा देवलोक मझार ॥७॥ सातमा देवलोक रो चब्यो थको रे लाल, लेसी उत्तम कुल अवतार । तिहां पिण वाणी मुणे थिवरां तणी रे लाल, बले लेसी संजम भार ।।८।। तिहां पिण चारित गुध आराधसी रे लाल, काल करसो तिण ठाम । देवता होसी नवमां देवलोक में रे लाल, तिहां पिण सुख पामसी अभिराम ।।६।। ते चवसी नवमा देवलोक थी रे लाल, वले लेसी मानव अवतार । तिहां पिण वाणो सुण थिवरां तणी रे लाल, वले लेसी संजम भार ॥१०॥ तिहां चारित आराधे रूड़ी रीत सू रे लाल, काल करसी तिण वार । देवता होसी मोट को रे लाल, इग्यारमा देवलोक मझार ।।११।। इग्यारमा देवलोक थी रे लाल, चव लेसी मानव अवतार । तिहां पिण वाणी सुणे थिवरां तणी रे लाल, संजम ले होसी मोटो अणगार ॥१२॥ काल करसी चारित आराध नै रे लाल, जासी स्वार्थसिध मझार । महामोटो होसी देवता रे लाल, तिणरा सुख रो घणों विसतार ।।१३।। ० ० ० देवता मांहे सारे सिरे, स्वार्थसिद्ध मझार। भारी पुन उपजाए तिहां ऊपनों, त्यांरा सुख घणां श्रीकार ॥१॥ मेहलायत मोटी रलीयामणी, तिहां लागी झिगमिग जोत । अंधकार कदेइ हुवै नहीं, सदा होय रहयो छै उद्योत ।।२।। तिहां सेज्या अतंत रलियामणी, तिण ऊपर चंद्रवो एक । तिणरै लेहकै मोती नों झूबको, ते शोभ रहयो छ विशेष ॥३॥ सोवन पानड़ियां करो, मोती रह्या छै ताम । वले सोवन सर में पोया थकां, त्यांरो रूप घणों अभिराम ।।४।। मेहलायत सेज्या नै मोत्यां तणों, इधको घणों छै सरूप। थोड़ो-सो परगट करूं, ते सुणजो अति चंप ।।५।। ४३४ भगवती-जोड Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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