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तिण ठामे ध्यान ध्यावतां, उपनों मन में अधवसाय । म्हारा धर्माचार्य वीर नैं, रोग ऊपनों आय ।।३।। छ मास रै छेहड़े लेस्या थकी, छदमस्थ थका करसी काल । इम सीहे सुणी लोकां कनै, उठी मोह नी झाल ।।४।।
ढाल : २७
[बालम मोरा हो बिछडिया धणो संभर अथवा सहियां हे मोरी आज सोनं रो सूरज ऊगियो] हिवै सीहो अणगार तिण अवसरे, तिण पाम्यो घणों दुख अतंत ।
जिणंद मोरा हो। मोटो दुख माणसीक मन ऊपनों, जाण्यो काल करसी भगवंत ।
जिणंद मोरा हो।
तुझ विरहो मुझ दोहिलो ॥१॥ आं० हिवै हं प्रश्न पूछस केहन, कुण देसी प्रश्नां रा मोनें जाब । तुझ दरसण री हती मौन चावना, जब दरसण करतो सताब ।।२।। तो हिवै सर्व पाखंडी गूंजसी, वले बधसी घणों मिथ्यात। अंधकार होसी भरतखेतर में, जाण पूरी अमावस री रात ।।३।। आप विना इण भरतखेतर मझे, सर्व सासण होसी अनाथ । वले हलुकरमा जीवां तणों, त्यांरो कुण काढसी मिथ्यात ।।४।। आप विनां इण भरतखेतर मझे, इसड़ी वाणी कुण वागरै आम । ते सुण-सुण भवियण जीवां तणां, तुरत सुलटा हुवै परिणाम ।।५।। तीनसौ नै तेसठ आप भाषिया, पाखंडियां तणां मत जाण। आप विना पाखंडी घणां जीव नं, त्यांरा मत में न्हाखसी ताण ताण ।।६।। अंतरंग माहे दुख व्याप्यो घणों, तिणरी छाती भराणी छै ताहि। जब आतापना भूम थी नीकल्यो, गयो मालुआ कच्छ मांहि ।।७।। मालुआ कच्छ नैं मझ तिहां गयो, तठे मिनख नहीं कोइ ताम । तिहां मोटे-मोटे सब्दे रोवै घणों, घणी कूक पाडै तिण ठाम ।।८।। जो आप आउखो पूरा कियां, किणनै कहिस हिया री हूं बात। मुझ में आप तणों आधार छै, आप विनां हं निश्चै अनाथ ।।६।। इणविध आक्रंद करै घणों, मोटे सब्दां रोवै बांगां पार। तुझ विना तो हूं दुखियो घणों, म्हारो किम नीकलै जमवार ।।१०।। ए मोह करम जोरावर जीव नै, तिणसं करै अनेक अकाज । तिण उदे आयां संवली सूझे नहीं, ते जाणै छै श्री जिणराज ॥११॥
वीर जाण्यो सीहा नैं रोवतो, जब कहै साधां मैं विचार । अंतेवासी सिष मांहरो, सीहो नामे अणगार ॥१॥
४२० भगवती-जोड़
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