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इत्यादिक रिध सतकार रे, मुझ सरीर नै ।
नगरी बार काढजो ए।।११।। वले मुख सं कहिजो आम रे, संका मत आणजो।
आज हुवो अंधारो भरत में ए ।।१२।। इण अवसर्पिणी मांहि रे, चरम तीर्थंकर ।
ते करम खपाय मुगते गया ए ।।१३।। जस कीरत गुणग्राम रे, कीजो अति घणां।
ज्यं जिणमारग दीपै घणों ए ।।१४।। गोसालो मंखली-पूत रे, जिण चोवीसमों।
ते सींह तणी परे विचरता ए।।१५।। ते तारण-तिरण जिहाज रे, भव जीवां तणां ।
इणविध कोजो उद्घोषणा ए ।।१६।। ते पुरष गया • काल रे, तो हिवै भरत में ।
मिथ्यातज वधसी अति घणों ए ।।१७।। ते सासणनायक साम रे, विच्छेद गयां थकां ।
हिवै कासप अति गूंजसी ए॥१८।। कासप री मन खांत रे, आज पूरीजसी।
जाणे मत फेलांसू मांहरो ए ।।१६।। त्यां पुरुषां नै देख रे, पाखंडी धूजता।
सनमुख कोइ न फुरकता ए।।२०।। आगा थी जाता भाग रे, पग नहीं मांडता।
छिए जाता काने सुण्यां ए॥२१॥ इत्यादिक बोल अनेक रे, कहिजो जुगत सू ।
बहु जन में संभलावता ए॥२२।। पाड़े मोटे-मोटे सब्द रे, एहवी उदघोषणा।
ठाम-ठाम करजो घणी ए ।।२३।।
दूहा
ए वचन गोसालो कह्या तके, थिवरां सुण तिण वार । विनै सहीत हाथ जोड़ नै, रूड़ी रीत किया अंगीकार ।।१।। हिवै गोसालो सातमी रात में, लाधो समकत सार । अधवसाय मन में ऊपनों, जब करै छै कुण विचार ।।२।। म्है कूड़ कपट करे घणों, मत बांध्यो एकत। हं प्रतख झूठो निसंक सू, साचा श्री भगवंत ।।३।। जो ए सल मांहे रहै मांहरे, तो बध जाऔ अनन्त संसार । नरकादिक दुख भोगवं, तिणरो कहितां न आवै पार ।।४।। तो हिवै सल न राखणों, आलोवण कियां सुध थाय। हिवै करै आलोवण किण विधे, ते सुणजो चित ल्याय ॥५॥
गोसाला री चौपई, ढा० २३ ४१५
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