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________________ शिवर गोसाला रा ति अवसरे रे त्यां पिण जाण्यों तिण ने विपरीत रे । प्रश्न पूछ्यां राजाब न ऊपनां रे वले साध मारण री जाणी नीत रे ॥१०॥ जब के यक चिवरां गोसाला भणी रे, तिहाइज छोड़ दिया ततकाल रे । पखपात न राली वेलां गुर तणी रे गुण अवगुण निज नंगा लिया निहाल रे ।। ११॥ बीर जिणंद समीप आय में रे, त्यां वंदना कोधी छे बारूवार रे। त्याने जाणं मोटा तीर्थंकर केवली रे, त्यां पासे त्यां लीधो संजम भार रे ।। १२ ।। के धियरां गोसाला नैं नहीं छोड़ियो रे, ते तो रह्या छे तिण रे पास रे । hi खोटो जायो पण मत छोड्यो नहीं रे, केइ मन मांहे हुआ अतंत उदास रे ॥१३॥ गोसाला रा थिवर आया भगवंत में रे, जब केयक कहिवा लागा आम रे । इण बेला गमाया लोकां देखता रे, इहाँ आय पढ़ाई उलटी माम रे ।। १४ ।। गोसाला रा थिवर लिया समझाय नें रे, त्यांरं तो ग्यांन तणी छै बात रे । ओ गोसालो अग्यानी दृष्टी पापियो रे, इण कीधी सुधा साधां री पात रे ।। १५ ।। घणा लोकां रे मन इम मानियो रे, गोसालो भाखै ते सतवाय रे । वीर नहीं छं जिण चोवीसमा रे अगहूंतो बोलं मूसावाय रे ।। १६ ।। केएक उत्तम था से इस कहे रे, गोसालो जिण नहीं करें अन्याय रे । सतवादी वीर जिणंद चोवीसमां रे एकदेव न बोले मुसावाय रे ।।१७।। कितरांएक से सांसो मिटियो नहीं रे, म्हाने तो समझ पड़े नहि काय जी जिग दिन पिण सगला समस्या नहीं रे, भोल पण धो लोकां मांय रे ।। १८ ।। श्रावक गोसाला रै सुणिया अतिघणां रे इग्यारे लाल इगसठ हजार रे । वीर रे एक लाख वले ऊपरं रे, गुणसठ सहंस इधिक विचार रे ॥१६॥ जद पिण पाखंडी था अति घणां रे, पिण गोसाला रो पाखंड चलियो जोर रे । वीर जिणंद मुगत गया पर्छ रे, तिण में धर्म रहसी जिणराज रो रे, भवको पड़े ने वले मिट जायसी रे, भरत में होसी अंधारो घोर रे ॥२०॥ थोड़ो-सो आगिया नों चमकार रे । पिण निरंतर नहीं इकवीस हजार रे ।। २१ ।। Jain Education International 0 0 हा दस श्री वीर तणां समोसरण में दोष साधां री कीधी पात । बले उपसर्ग कियो भगवंत नं ते तो अछेरो छं सख्यात ॥ १ ॥ हुंदा नामे अवसर्पिणी, ते काल उतरतो जाण । बोलां री तेहमें, सम-सम अनंती हाण ॥२॥ जे निश्चै होणहार टले नहीं, जो करें कोड़ उपाय । व्यवहार रूप छै वारता, ते आगी पाछी पिण थाय || ३ || कोई निश्चै होणहार तिमहीज हुवै, ते भोलां खबर न कांय । ते भाव भेद परगट करूं, ते सुणओ चित ल्याय ॥४॥ For Private & Personal Use Only गोसला री चौपई, ढा० १८ ४०७ www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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