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________________ उदे आपो न संभाले रे । ऐ तो पेट भरण रो करे छे उपाय, लोकां ने केयक इणविध बोले अग्यानी, भाषा इसड़ो अंधकार तो तिण काले, उसभ तीर्थंकर थका हुआ इसड़ा वेदा रे, ते तो अनाद काल रा सेंदा रे ॥ २० ॥ इम सांभल उत्तम नर नारो, अंतरंग मांहे कीजो विचारो रे । पखपात किणही री मूल न कीजे, साचो मारग ओलख ने लीजे रे || २१|| घाले का ००० तिणा काष्ठ ने सूका पानड़ा रे, त्यांने जलावे कोयक आयने रे, हा तिण काले नै तिण समे, जब उपगार जाणें भगवंत । कहै साथ साधवी में बोलाय ने ये सांभलो एक दिष्टंत ॥ १ ॥ छे मत मांय रे । मनमानी रे ।। १६ ।। ढाल : १८ [बे-बे रे मुनिवर बहिरण पांगरधा अथवा आउखो तूटा ने सांधो को नहीं ] वले छाल ने तुस रा ढिगला जाण । अगन मेले तिण मांहे आण रे ॥ गोसालो लेस्या थी खाली हुवो रे ।।१।। ० Jain Education International तिण अगन थी बल जल नें भसम हुवा रे, तिण राख में अगन नहीं लिगार रे । इण म्हांरी घात करवा रे कारणे हि गोसालो तप तेज रहित हुवो सगत नहीं मिनख बालण तणी रे, रे, सर्व तेजू लेस्या काढी इण बार रे || २ || रे, ठाला ठीकर ज्यूं हूवो निरधार रे । इणरो डर मत राखो मूल लिगार रे || (गोसालो होय गयो ठाली ठीकरो रे ) ॥३॥ तेजू लेस्या तो जाबक नीकली रे, लारै तो लेस्या नहीं अंसमात रे । मुदे तो आ सिद्धाई पूरी पड़ी रे, तिण सूं मिनखां री करतो घात रे ॥४॥ हिवै इच्छा हुवै तो साधां तुम तणीं रे, तो थे धर्म री करो चोयणा जाय रे । वले प्रश्न थे पूछो गोसाला भणी रे, कारण वागरणा पूछो न्याय रे ||५|| इम सांभल सगला साधु हरषिया रे, सगला हवा से साहस धीर रे वीर ने वंदना करने नीकल्या रे, आय ऊभा गोसाला तीर रे ॥६॥ गोसाला सूं कीधी धर्म चोवणारे, पडियोयणा कोधो बले वशेस रे। अर्थ में हेत वागरणा तणां रे प्रश्न पूछपा तिण में अनेक रे ||७|| त्यांरा पूछयां रो जाब न आयो तेहने रे, जब कोप चढयो तिज में ततकाल रे। लागी अंतर में मालोकाल रे || ८|| ते दांत पीसे ने मन में परजले रे, जब गोसालो जाणे सर्व साधा तणी रे, इणरी इण ठामे कर दूं घात रे । पीड़ा आबाधा कर सकै नहीं रे, तेजू लेस्या नहि तिण में तिलमात रे ॥ ६ ॥ ४०६ भगवती जोड़ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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