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________________ हुलास बौर ने आणंद यांदे सर्व साधा ने कहे बतलाय 1 आयो गोतमादिक पास । थे सांभलजो चित बूहा हूं आज बेला रे पारणे, गयो सावत्थी नगरी माहि मौन गोचरी करतो देख नैं, गोसाले बोलायो ताहि ॥ १ ॥ जे गोसाले कही सका, दीधी साधी में सर्व सुणाय । लाय || १४ || मौने वीर मेहल्यो छे पो कने, तूं कहीजे साधां ने जाय || २ || गोसाला रा मत तणीं, कोइ म करजो बात । गोसाले सर्व साध थो, पड़वजियो मिध्यात ॥३॥ ए वचन आणंद से सांभले, सर्व साधां कियो अंगीकार । गोसाला रा मत तणीं, न करें बात लिगार ||४|| ढाल : १२ Jain Education International [पूज जी पधारो हो नगरी सेविया ] " हि गोसालो मंखली - पुत्र डाकोतरो तिरे मन मांहे धेष अपार रे । दोभागो । हलाहला कुंभारी री जायगा थकी, नीकले तिण वार रे दोभागी छै । । 1 चाल्यो रे गोसाली वीर सूं भगड़वा || १|| आं० निज संघ सहित गोसालो चालियो, तिण रा दुष्ट घणां परिणाम रे । वले अमरस वहितो मन में अति घणों, साथै लियो साथ हगाम रे ||२|| ते क्रोध करे ने अति प्रजत्यो धको मुख सूं कहे विपरीत वासरे। कासप सहीत सगला साधां तणी, आज समकाले कर घात रे || ३ || तपतो यको चाल्यो सिघर उतावलो आयो सावत्थी नगर मभार रे । ते सावत्यी रे मन बाजार में नोकले, लोकां ने कहै बासंबार रे ॥ ४ ॥ थे कहो दो तीर्थंकर महावीर तेहने तारण तिरण जोहाज रे । हि आवो तो दिखालूं तीर्थंकरपणों तेहनों, थे अरूवरू देखलो आज रे ||५|| एहवो घोष सन्द करतो थको सावस्थी नगर मभार रे । ए सब्द गोसाला रो बहु जण सांभली, घणां लोक हुवा तिण लार रे ॥६॥ विमती अनमती पाखंडी अति घणां ते पिण जोवा चाल्या ताम रे । 1 गृहस्थ अनेक नै वृन्द नर नार नां, ते पिण चाल्या छोड़े घर काम रे ||७|| सावत्थो बारे गोसालो नीकले आयो कोटग बाग रे मांय रे । 1 J जहां भगवंत महावीर देव बेठां तिहां ऊभो है गोसालो आय रे || नर नारी तो बोहत भेला हुवा सिंहां कोठग नामे बाग रे मांहि रे । हिवे गोसालो भगवंत श्री महावीर ने ओलंभा वचन कहे ताहि रे ॥ ६ ॥ ००० For Private & Personal Use Only गोसाला री चौपई, ढा० १५, १२ ३९७ www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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