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इण पिण देव आऊखो बांधियो, कोधो परत संसारो जी। विजे गाथापति ज्यू जाणजो, सगलोई विसतारो जी ।।१८।।
दहा
जब गोसाले मोनै दीठो नहीं, तंतूवाय-साला रै मांहि । जब मोनै जोयवा नीकल्यो, नगरी राजग्रही मांहि ॥१॥ तिहां न दीठो मो भणी, जब जोवण गयो नगरी बार।। सर्व दिस विदिस घणों जोवियो, पिण खबर न पामी लिगार ।।२।। उण कठेइ न दीठो मो भणी, ते विलखो हवो अथाय । खप खीजे पाछो आवियो, तंतूवाय-साला रै माय ।।३।। तिहां पाटियादिक दूरा किया, बणायो साधु रो वेस । तंतूवाय-साला थी नीकल्यो, आयो कोलाग नामे सनिवेस ।।४।। कोलाग सनिवेस रै बाहिरे, लोक कहै माहोमांहि आम । धिन-धिन करै बहुल ब्राह्मण भणी, विजै नी परे करै गुणग्राम ।।५।।
ढाल : ६
(सांमी म्हारा राजा ने धर्म सुणावज्यो)
मुझनै मूकीन थे किहां गया? कहै गोसालो आम हो।
स्वामी ! थे मुझनै मूकी नै किहां गया? गुर विण चेलो किहां रहे, किहां पामै विसराम हो ।।
सामी ! थे मुझनै मूकीनै किहां गया ॥१॥ आं० थां ऊपर म्हारो अति घणों, हूंतो अतंत सनेह हो । इसड़ा सिष सुवनीत ने, थे काय दे चाल्या छेह हो ।।२।। एहवी करे विचारणा, चाल्यो तिहां थी ताम हो। कोलाग नामे सनिवेस छ, आय जोया तिण ठाम हो ।।३।। कोलाग सनिवेस बाहिरे, कहै मांहोमांहि आम हो। बहल नामे ब्राह्मण तणां, लोक करै गुणग्राम हो ॥४॥ ए वचन गोसाले सांभल्यो, घणां लोकां रे पास हो। जब सांसो मन ऊपनों, पछै बोल्यो मन में विमास हो ॥५।। जेहवी रिध जोत छै म्हारा गुरु तणी, जस बल वीर्य बशेख हो। वले प्राक्रम त्यांमें अति घणों, इत्यादिक गुण अनेक हो ।।६।। धर्माचारज मांहरा, भगवंत श्री विरधमान हो। इसड़ो म्है एक दीठो नहीं, बले नहिं सुणियो म्है कान हो ॥७॥
गोसाला री चौपई, ढा० ६ ३८९
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