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________________ पण्णवणा ३६७०-७७ भगवई श० २०१७ में हीज पूर्व भगवान कह्यो -हे गोतम ! वेसियायण बाल तपस्वी तो उष्ण ते जो ने। मुकी अन म्है गोशाला नी अनुकम्पा अर्थे शीतल तेजोलेश्या मूकी । ते माहरी शीतल तेजोलेश्या करिक ते वेशियायण बाल तपस्वी नी उष्ण तेजोलेश्या हणाणीएहवी वार्ता प्रगट पाठ में छ। ते माटै उष्ण अनै शीतल ए बिहं तेजोलेश्या और ते बाल-तपस्वी उष्ण तेजोलेश्या फोड़िवी अने भगवान शीतल तेजोलेश्या फोड़िवी। छद्मस्थपणे तो ए कार्य कियो अनै केवल ऊपनां पछ पन्नवणा पद ३६ में कह्यो-आहारक लब्धि फोड़व्यां जघन्य ३ उत्कृष्ट ५ क्रिया लागे । इमहिज वैक्रिय लब्धि फोड़व्यां जघन्य ३ उत्कृष्ट ५ क्रिया लागै, इमज तेजु लब्धि फोड़व्यां जघन्य ३ उत्कष्ट ५ क्रिया लागै । इम कह्यो तो जोवो नीं, केवल ऊपनां पछै तो तेजु लब्धि फोडव्यां जघन्य ३ उत्कृष्ट ५ क्रिया कही। अनै छद्मस्थपणे पोते तेजोलेश्या फोड़वी तो जे केवल ऊपना पछै जघन्य ३ उत्कृष्ट ५ क्रिया कही ते वचन प्रमाण कीज के छद्मस्थपणे कार्य कीबूं ते प्रमाण कीजै। न्याय दृष्टि करि विचारी जोइज्यो। जे याहारीक वैक्रिय तेजू लब्धि फोड़वेला तेहनै जघन्य ३ उत्कृष्ट ५ क्रिया लाग हीज पिण इम न कह्यो छद्मस्थपणे तीर्थंकर अथवा गणधर त्यां नैं तो न लागै अनै बीजा लब्धि फोड़व तो लाग-एहवू वचन नथी। भगवती शतक २० में जघा विद्या चारण लब्धि फोड़वं ते थानक बिना आलोयां मरै तो विराधक कह्यो। तिहां वृत्ति में पिण लब्धि नुं फोडिवू निश्चय प्रमाद कह्यो। तथा भगवती शतक १६ उ०१ आहारक लब्धि फोडब्यां आहारक शरीर निपजायां प्रमाद आश्री अधिकरण कह्यो। तथा भगवती शतक ३ उ० ४ मायी वैक्रिय कर ते बिना आलोयां मरै तो विराधक । इम अनेक ठामें लब्धि फोड़वणी सूत्र में वर्जी छ । ते माटै भगवान छद्मस्थपण शीतल तेजोलेश्या फोड़वी ते सरागभावे करी ए कार्य कियो। तेहमें धर्म किम कहिये ? कोइ कहे-च उदै पूर्वधर चउनाणी भगवान हुंता, ते किम खलावै ? तेहनों उत्तर--दशवकालिक अ०८ गाथा ५० मी दृष्टिवाद नों जाण वचन में खलाय जाणो ते प्रत और साधु नै हसणो नहीं। तथा उपासगदशा अ० १ चउनाणी चउदै पूर्वधारी गोतम चउदै हजार साधां रा शिर सेहरा प्रथम गणधर ते पिण आणंद नै घरै वचन में खलाया। ते मार्ट चउदै पूर्वधर चउनाणी वचन में खलावै तेहनों कारण नहीं। छद्मस्थपणे भगवान छठ गुणस्थान हंता, तिहां प्रमाद आथव अनै कषाय आश्रव हूंतो। ते प्रमाद कषाय आश्रयी समय-समय सात-सात कर्म लागता, छद्मस्थपणे तो दश सुपना देख्या, तिहां प्रथम स्वप्ने पिशाच प्रति जीतो-ए पिण भाव सावज्ज जाणवो, वलि छद्मस्थपणे गोशाला नै दीक्षा दीधी, तिल बतायो, तेजोलेण्या सिखाई, शीतल तेजोलेश्या फोड़वी-ए सर्व कार्य छद्मस्थपणां थी किया, पिण जे कार्य नी केवली आज्ञा न देवं, तेहनै निरवद्य किम कहिये ? ज्ञान नेत्रे करी विचारी जोईज्यो। इहां तो वृत्तिकार पिण गोशाला नै बचायो, ते सरागभावे करी का अनै दोय साधां - न वचावस्यै ते वीतराग भावे करी का । ज्ञान नेत्रे करी विचारी जोईज्यो । भगवती वृ०प० ७९५ भगवई श० १६।२३,२४ भगवई श० ३।१९२ दसवै० ८।५० उवासग० ११७९ ३१८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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