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२६. जिम भाषा कही तिम कहिवो मन भणी रे.
२९. जहा भासा तहा मणे वि जाव (सं० पा०) नो जाव अजीव तणै मन नांहि रे।
अजीवाणं मणे । द्रव्य मन आश्री ए सह वारता रे,
भावे मन आश्री नहिं छै ताहि रे ।।
सोरठा ३०. 'द्रव्य मन पुद्गल होय, भावे मन तो जीव छ ।
जिन वच वारू जोय, देखो न्याय सिद्धांत नों॥ ३१. दश जीव परिणामी माय, जोग परिणामी जिन का।
भाव जोग इण न्याय, दशमैं ठाणे' देखलो ।। ३२. शत बारम पंचमुद्देश', उट्ठाण कम्म बल वीर्य नैं।
नहीं वर्णादिक लेश, पिण ए भावे जोग है। ३३. शत तेरम धुर उदेश', नोइंदिय नो अर्थ इम।
चैतन्य रूप विशेष, भाव मन ते इम वृत्तौ ॥ ३४. शत बारम दशम उद्देश५, जोग आत्मा जिन कही।
भाव जोग ए शेष, ज्ञान आत्मा तेम ए॥ ३५. ज्ञान दर्शण चारित्त, एहनै पिण आत्मा कही।
ए जिम जीव कथित्त, जोग आत्म पिण जीव तिम ।। ३६. इत्यादिक बहु ठाम, भाव जोग तो जीव छ।
पुद्गल नं परिणाम, द्रव्य जोग जिनजी क ह्यो।' (ज०स०) ३७. *हे प्रभु ! पहिलां मन कहियै अछ रे,
३७. पुचि भंते ! मणे ? मणिज्जमाणे मणे ? के मन ते प्रवर्तण लागो ताय रे। एतले वर्तमान काले तसु रे, मन नै कहीजै छै जिनराय रे ॥ ३८. इम जिम भाषा नों वर्णन कियो रे,
३८. एवं जहेब भासा । (श• १३।१२६) मन ने पिण कहिवो तिणहिज रीत रे। काल वर्तमान विषे मन में कां रे,
अतीत अनागत नहिं संगीत रे॥ ३६. कितरै प्रकार प्रभु ! मन दाखियो रे ?
३९. कतिविहे णं भंते ! मणे पण्णत्ते ? जिन कहै मन है च्यार प्रकार रे।
गोयमा ! चउब्विहे मणे पण्णत्ते, तं जहा-सच्चे, सत्य असत्य अनैं सत्यमोस छै रे,
मोसे, सच्चामोसे, असच्चामोसे । (श० १३।१२७) चउथो असत्यामोस ववहार रे॥
सोरठा ४०. केवल एह कहिवाय, मनोद्रव्य समुदाय ते।
४०,४१. केवलमिह मनोद्रव्यसमुदयो मननोपकारी मनःचिंतन तणोज ताय, उपगारी ते द्रव्य है।
पर्याप्तिनामकर्मोदयसम्पाद्यः। (वृ०प०६२२) ४१. तथा मन:-पर्याप्त, नाम कर्म नां उदय थी।
पुद्गल तेहिज आप्त, इहविधि आख्यो वृत्ति में ।। ४२. ते मनोद्रव्य भेदाय, भाषा द्रव्य तणी पर। ४२. भेदश्च तेषां विदलनमात्रमिति। (व०प० ६२२)
नहि संखेज योजन जाय, षट दिश वलि लोकत लग ।। १. ठाणं १०१८
२. श० १२।१११ ३. श० १३३३ ४. भ० वृ० ५० ५९९ ५. १२।२०२ *लय : श्री जिणवर गणधर
२०४ भगवती जोड़
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