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________________ ४२. *प्रभ ! एक अधर्मास्तिकाय नों, रह्यो एक प्रदेश हो, प्रभुजी ! धर्म-प्रदेश किता तिहां? जिन कहै एक कहेस हो, गोयम ! ओगाढे ४२. जत्थ णं भते ! एगे अधम्मत्थिकायपदेसे तत्थ केवतिया धम्मस्थिकायपदेसा ओगाढा ? एक्को । ४३. केवतिया अधम्मत्थिकायपदेसा? ४४. नत्थि एक्को वि ४५. सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स । ४३. प्रभु ! अधर्मास्तिकाय नों, रह्यो एक प्रदेश हो, प्रभुजी ! अन्य अधर्मास्ति तणां, किता प्रदेश कहेस हो, प्रभुजी! ४४. जिन कहै इक पिण नहिं तिहां, अधर्मास्तिकाय हो, गोयम ! इकहिज छै दूजी नथी, ते माटै न कहाय हो, गोयम ! ४५. शेष थाकतो ते सहु, धर्म विषे कह्य जेम हो, गोयम ! तेम अधर्मास्ति विष, कहिवं सगलं एम हो, गोयम ४६. प्रभु ! एक आगासत्थिकाय नु, रह्यो एक प्रदेश हो, प्रभुजी ! धर्म-प्रदेश किता तिहां ? अवगाह्या सुविशेष हो, प्रभुजी ! ४७. जिन कहै अवगाह्य कदा, लोकाकाशे तास हो, गोयम ! कदाचित न अवगाहियो, अलोक ने आकाश हो, गोयम ! (श० १३/७५) ४६. जत्थ णं भंते ! एगे आगासस्थिकायपदेसे ओगाडे तत्थ केवतिया धम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा ? ४७. सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा 'सिय ओगाढा सिय नो ओगाढ' त्ति लोकालोकरूपत्वादाकाशस्य लोकाकाशेऽवगाढा अलोकाकाशे तु न तदभावात् । (वृ०प० ६१४) ४८, जइ ओगाढा एक्को ४९. एवं अधम्मत्थिकायपदेसा वि। ५०. केवतिया आगासत्यिकायपदेसा? नत्थि एक्को वि। ५१. केवतिया जीवत्थिकायपदेसा? सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा ५२. जइ ओगाढा अणंता ५३. एवं जाव अद्धासमया। (श. १३७६) ४८. जो अवगाहो तो तिहां, एक प्रदेश कहेस हो, गोयम ! एक आकाश-प्रदेश त्यां, इक ही धर्म-प्रदेश हो, गोयम ! ४६. एम अधर्मास्ति तणो, प्रदेश कहिवं अशेष हो, गोयम ! इक प्रदेश लोकाकाश नों, त्यां एक अधर्म-प्रदेश हो, गोयम ! ५०. किता आकाश-प्रदेश त्यां? जिन कहै इक पिण नांय हो, गोयम ! आगासस्थिकाय एक छ, दूजी नहिं कहिवाय हो, गोयम ! ५१. किता जीवास्तिकाय नां, प्रदेश त्यां अवगाहि हो, प्रभजी ! जिन कहै अवगाह्या कदा, कदाचित रह्या नांहि हो, गोयम ! ५२. जो अवगाह्या तो अनंत है, लोकाकाशे कहेस हो, गोयम ! तिहां अनंत जीवां तणां, रह्या अनंत प्रदेश हो, गोयम ! ५३. इम यावत अद्धा समय जे, त्यां लग कहिवा एह हो, गोयम ! पुद्गल नैं अद्धा समय जे, तिमज अनंत कहेह हो, गोयम ! ५४. जीवास्तिकाय नों प्रभु ! ज्यां रह्यो एक प्रदेश हो, प्रभुजी ! धर्म-प्रदेश किता तिहां? जिन कहै एक कहेस हो, गोयम ! ५५. अधर्मास्तिकाय नों, प्रदेश इम कहिवाय हो, गोयम ! आकाशास्तिकाय नों, प्रदेश पिण इम ताय हो, गोयम ! ५६. जीव-प्रदेश किता तिहां? जिन भाखै सुण संत हो, गोयम ! ज्यां इक जीव-प्रदेश त्यां, अनंत जीवां रा अनंत हो, गोयम ! ५७. शेष धर्मास्ति विषे कह्यो, कहिवो तेम उदंत हो, गोयम ! ज्यां इक जीव-प्रदेश त्यां, पुद्गल समय अनंत हो, गोयम ! ५८. प्रभ! पुदगलास्तिकाय नों, ज्यां रह्यो एक प्रदेश हो, प्रभजी! त्यां धर्मास्तिकाय नां, किता प्रदेश कहेस हो? प्रभुजी ! ५६. जिम जीव-प्रदेश विषे कह्य, तिम पुद्गल नों अशेख हो, गोयम ! इक प्रदेश पुद्गल तणो, धर्म-प्रदेश त्यां एक हो, गोयम ! *लय : सीता ओलखाब सोका भणी ५४. जत्थ णं भंते ! एगे जीवत्थिकायपदेसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा ? एक्को ५५. एवं अधम्मत्थिकायपदेसा वि, एवं आगासस्थिकाय पदेसा वि। ५६. केवतिया जीवस्थिकायपदेसा? अर्णता। ५७. सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। (श. १३७७) ५८. जत्थ णं भंते ! एगे पोग्गलत्थिकायपदेसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा ? ५९. एवं जहा जीवत्थिकायपदेसे तहेव निरवसेसं । (श. १३७८) १७८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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