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________________ २६-२८. 'जाव केवइएहि' इत्यादी यावत्करणादद्धासमयसूत्रे आद्यं पदपञ्चकं सूचितं षष्ठं तु लिखितमेवास्ते (वृ०प०६१३) सोरठा २६. धुर पद पंच पूछेस, अद्धा समयो छै तिको। कितै धर्म-प्रदेश, के अधर्म करि फर्शणा? २७. कितै आकाश-प्रदेश, कितै जीव-प्रदेश करि। पुद्गल ना पूछेस, कितै प्रदेश करि फर्शणा? २८. जाव शब्द में तास, पुद्गल लग जे सूत्र है। कित समय करि फाश, सूत्र छठो कहिये हिवै ॥ २६. *जाव कितै अद्धा समय करि, फर्रु छै भगवान हो ? प्रभुजी ! जिन कहै इक पिण समय करि, नहीं तास फर्शाण हो, गोयम ! २९. जाव केवतिएहि अद्धासमएहिं पुठे ? नत्थि एक्केण वि। (श० १३/७३) ३०. तत्र तु 'नत्थि एक्केणवि' त्ति निरुपचरितस्याद्धा समयस्यैकस्यैव भावात् (वृ० प० ६१३)) ३१,३२. अतीतानागतसमययोश्च विनष्टानुत्पन्नत्वेनासत्त्वान्न समयान्तरेण स्पृष्टताऽस्तीति ।। (वृ० प० ६१३) ३३. जत्थ णं भंते ! एगे धम्मत्थिकायपदेसे ओगाढे, तत्थ केवतिया धम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा? ३४. नत्थि एक्को वि सोरठा ३०. वृत्ति विषे इम न्याय, अद्धा समय तणोज जे। उपचय नहिं छै ताय, एक समय नां भाव थी। ३१. समय अतीत पिछाण, ते तो विणठो सर्वथा। समय अनागत जाण, ते अणऊपजब करी ।। ३२. समय जिको वर्तमान, तेह थकी जे समय अन्य । तास संघाते जाण, नहीं फर्शणा इम वृत्तौ ।। अवगाहना द्वार ३३. *प्रभु ! धर्मास्तिकाय नों, रह्यो एक प्रदेश हो, प्रभुजी ! किता धर्म-प्रदेश त्यां? जिन भाखै सुविशेष हो, गोयम ! ३४. जिन कहै धर्म-प्रदेश ज्यां, रह्यो एक सुविशेख हो, गोयम ! अन्य धर्मास्तिकाय नों, रह्यो प्रदेश न एक हो, गोयम ! ३५. किता अधर्म-प्रदेश त्यां? जिन भाखै सुविशेष हो, गोयम ! एक धर्म-प्रदेश त्यां, एक अधर्म-प्रदेश हो, गोयम ! ३६. किता आकाश-प्रदेश त्यां? जिन भाखै सूविशेष हो, गोयम ! एक धर्म-प्रदेश त्यां, एक आकाश-प्रदेश हो, गोयम ! ३७. किता जीवास्तिकाय नां, प्रदेश त्यां भगवंत हो? प्रभुजी ! जिन कहै अनंत जीवां तणां, तिहां प्रदेश अनंत हो, गोयम ! ३८. किता पुदगलास्तिकाय नां?जिन कहै अनंत कहेस हो, गोयम ! इक-इक धर्म-प्रदेश त्यां, पुद्गल अनंत प्रदेश हो, गोयम ३६. किता अद्धा समया तिहां? तब भाखै जिनराय हो, गोयम ! कदाचित अवगाहिया, कदाचित नहिं अवगाय हो, गोयम ! ४०. जो अवगाहा छ तिके, मनुष्यक्षेत्र रै माय हो, गोयम ! अनंत समय अवगाहिया, पूरवली पर न्याय हो, गोयम ! ३५. केवतिया अधम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा ? एक्को। ३६. केवतिया आगासत्थिकायपदेसा ओगाढा ? एक्को। ३७. केवतिया जीवत्थिकायपदेसा ओगाढा ? अर्थता । ३८. केवतिया पोग्गलत्थिकायपदेसा ओगाढा ? अणंता । ३९. केवतिया अद्धासमया ओगाढा ? सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा ४०. जइ ओगाढा अणंता । (श. १३/७४) 'अणंता' त्ति, अद्धासमयास्तु मनुष्यलोक एव सन्ति न परतोऽतो धर्मास्तिकायप्रदेशे तेषामवगाहोऽस्ति नास्ति च, यत्रास्ति तत्रानन्तानां भावना तु प्राग्वत् । (व. प. ६१४) सोरठा ४१. इक-इक धर्म-प्रदेश, पुद्गल द्रव्य अनंत त्यां। समय एक वर्तेस, कह्या अनंता एक ने॥ *लय : सीता ओलखाव सोका भणी श.१३,उ०४, २७९ १७७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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