SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४. लोक मध्य ए द्वार पंचमो, आख्यो तसु विस्तार । तेरम शतक उद्देश तुर्य नों, कह्यो देश अधिकार ।। ६५. दोयसौ नैं छोहतरमी, आखी ढाल विशाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय-जश' मंगलमाल॥ ढाल : २७७ दिशि विदिशि प्रवह पद दूहा १. इंदा णं भंते ! दिसा किमादीया, किंपवहा, २. कतिपदेसादीया, कतिपदेसूत्तरा, किंपज्जवसिया, किसंठिया पण्णता? कतिपदेसिया, १. ऐंद्री पुरवदिशि प्रभु ! कवण आदि छ तास। किहां थी चाली प्रवर्ती, द्वितीय प्रश्न सुविलास ।। २. जेहनें आदि प्रदेश के, के प्रदेश वृद्धि जान । किता प्रदेशिक अंत किहां, अछे किसै संस्थान ? ३. ए साघुइ प्रश्न नां, उत्तर दै अरिहंत । श्रोता चित दे सांभलो, स्वाम वचन शोभंत ।। *जय-जय ज्ञान जिनेंद्र नों जशधारी। (ध्रुपदं) ४. ऐंद्री पूर्व दिशि तेहनै जशधारी, ___ रुचक आदि सुविशेष रे ! गोयम गणधार! रुचक थकी चाली अछ गुणधारी, आदि छै दोय प्रदेश रे गोयम गणधार ! ५. आगल दोय प्रदेश नी जशधारी, उत्तरोत्तर वृद्धि होय रे गो०। इम बे-बे प्रदेश नी गुणधारी, थेट ताई वृद्धि जोय रे गो० ॥ स्थापना रुचक थकी दिश चाली तेहनों यंत्र ४. गोयमा ! इंदा णं दिसा स्यगादीया, रुयगप्पवहा, दुपएसादीया, ५. दुपएसुत्तरा, - *लय : हूं तुझ आगल सी कहूं कनइया १५८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy