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________________ २७,२८ त्रिकयोगे तु सप्तानां पदानां पञ्चविंशद्विकल्पाः, पञ्चानां च त्रित्वेन स्थापने षड् विकल्पास्तद्यथा.... तदेवं पञ्चत्रिंशतः षड्भिर्गुणने दशोत्तरं भङ्गकशतद्वयं भवति । (वृ०प० ४४४) २६-३१. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए तिणि अहेसत्तमाए होज्जा । २६. पंच जीव नां हिव कहूं, त्रिकसंयोगिक तेह । षट विकल्प करि भंग तसं, बे सौ दश गिण लेह ।। पंच जीव नां त्रिकसंजोगिया ६ विकल्प करि २१० भांगा कहै छ*२७. पनर भांगा रत्न सेती, सक्कर थी दश जणिय । वालु थी षट, पंक थी त्रिण, धूम थी इक आणियै ।। २८. एह जे पैंतीस भांगा, षट विकल्प करि षटगुणां । दोयसौ दश भंग होवै, पंच जे जीवां तणां ।। ___ वा०-- रत्न थी पनर, तिके रत्न सक्कर थी ५, रत्न वालु थी ४, रत्न पंक थी३, रत्न धूम थी २, रत्न तम थी १, एवं १५ भांगा ६ विकल्प करि जुआ कहै छ-प्रथम रत्न सक्कर थी ५ भांगा ६ विकल्प करि ३० भांगा कहै छप्रथम विकल्प करि ५ भांगा श्रिी जिन भाखै सुण गंगेया ! (ध्रुपदं) २६. अथवा एक रत्न इक सक्कर, तीन वाल में होय जी। अथवा एक रत्न इक सक्कर, तीन पंक अवलोय जी।। ३०. अथवा एक रत्न इक सक्कर, तीन धम रै माय । अथवा एक रत्न इक सक्कर, तीन तमा में जाय ।। ३१. अथवा एक रत्न इक सक्कर, तीन सप्तमी होय । धर विकल्प करि रत्न सक्करसं,पंच भांगाए जोय ॥ दूजे विकल्प करि ५ भांगा३२. अथवा एक रत्न दोय सक्कर, दोय वाल रै माय । अथवा एक रत्न दोय सक्कर, दोय पंक दुख पाय ॥ ३३. अथवा एक रत्न दोय सक्कर, दोय धमका जाय । अथवा एक रत्न दोय सक्कर, दोय तमा रै माय ।। ३४. अथवा एक रत्न दोय सक्कर, दोय तमतमा माय । द्वितीय विकल्प रत्न सक्कर थी,पंच भांगा इमथाय ।। तीज विकल्प करि ५ भांगा३५. अथवा दोय रत्न इक सक्कर, दोय वालुका हुंत । अथवा दोय रत्न इक सक्कर, दोय पंक उपजंत ।। ३६. अथवा दोय रत्न इक सक्कर, दोय धूम दुखदाय । अथवा दोय रत्न इक सक्कर, दोय तमा रै मांय ।। ३७. अथवा दोय रत्न इक सक्कर, दोय सप्तमी होय । तृतीय विकल्प रत्न सक्कर थी, पंच भंगा इम होय ॥ चउथ विकल्प करि ५ भांगा - ३८. अथवा एक रत्न त्रिण सक्कर, एक वालुका जाण । अथवा एक रत्न त्रिण सक्कर, एक पंक पहिछाण ।। ३६. अथवा एक रत्न त्रिण सक्कर, एक धूमका मांय । अथवा एक रत्न त्रिण सक्कर, एक तमा दुख पाय ।। 'लय : पूज मोटा भांज तोटा लियः श्री पूज्य भीखणजी रो समरण कोज १४ भगवती-जोड़ ३२-३४. अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए दो वालु यप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा। ३५-३७. अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा । ३८-४०. अहवा एगे रयणप्पभाए तिण्णि सक्करप्पभाए एगे बालुयप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए तिषिण सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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