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________________ २५. अट्ठ आसे आसप्पवरे, अट्ट हत्थी हत्थिप्पवरे २५. आठ तुरंगम आपिया जी काइ, तूरंग विषेज प्रधान । आठ हाथी फुन आपिया जी काइ, गज में पवर पिछान ।। २६. अष्ट ग्राम वलि आपिया जी कांइ, ग्राम विषेज प्रधान ! दश सहस्र घर सहित छ जी कांइ, एक ग्राम सुविधान ।। २७. आठ दास मुख्य दास में जी कांइ, इमहिज दासी अष्ट । कार्य पूछी मैं करै जी कांइ, किंकर ते अठ श्रिष्ट ।। २६. अट्ठ गामे गामप्पवरे दसकुलसाहस्सिएणं गामेणं २८. इम कंचइज पोलिया जी काइ, खोजा वरिसधर एम। ___ कार्य अंतेउर तणां जी काइ, चिंतक महत्तर तेम ।। २७. अट्ट दासे दासप्पवरे एवं दासीओ एवं किंकरे ___ 'किंकरे' त्ति प्रतिकर्म पृच्छाकारिणः (व०प०५४६) २८. एवं कंचुइज्जे एवं वरिसधरे एवं महत्तरए 'कंचुइज्जे' त्ति प्रतीहारान् 'वरसधरे' त्ति वर्षधरान् वद्धितकमहल्लकान् ‘महत्तरान्' अन्तःपुरकार्यचिन्तकान् (वृ० ५० ५४७) २६. अट्ठ सोवण्णिए ओलंबणदीवे अट्ठ रूप्पामए ओलंबण दीवे 'ओलंबणदीवे' त्ति शृंखलाबद्धदीपान् (वृ० ५० ५४७,५४८) ३०. अट्ठसुवण्णरुप्पामए ओलंबणदीवे २६. सोना नां सांकल बंध्या जी काइ, दीपक आठ उदार । रूपा नां सांकल बंध्या जी कांइ, अष्ट दीपक श्रीकार ॥ ३०. सूवर्ण नैं रूपा तणां जी कांइ, सांकल बद्ध उदार । दीपक अष्ट सुआपिया जी काइ, इम त्रिहं भेद विचार ।। ३१. अष्ट दीपक सोना तणां जी काइ, ऊर्ध्व दंडवत देख । तीन भेद तेहनां कह्या जी कांइ. पूर्ववत संपेख ।। ३२. आठ दीवा सोना तणां जी काइ, भोडल सहित तद्रप । इम ए पिण त्रिण भेद थी जी काइ, रूप रु सुवर्ण रूप ।। ३१. अट्ट सोवण्णिए उक्कंबणदीवे एवं चेव तिणि वि __'उक्कंबणदीवे' त्ति उकंबनदीपान ऊर्ध्वदण्डवतः (वृ० ५० ५४८) ३२. अट्ट सोवण्णिए पंजरदीवे एवं चेव तिण्णि वि 'पंजरदीवे' त्ति अभ्रपटलादिपञ्जरयुक्तान (वृ० ५० ५४८) ३३. अट्ठ सोवण्णिए थाले अट्ठ रुप्पामए थाले, अट्ठ सुवण्णरूप्पामए थाले ३४. अट्ठ सोवण्णियाओ पत्तीओ ३५. अट्ट सोवणियाई थासगाई ___'थासगाई' ति आदर्शकाकारान् (वृ० ५० ५४८) ३६. अट्ट सोवण्णियाइं मल्लगाई ३३. आठ थाल सोना तणां जी काइ, आठ रूपा रा थाल । आठ सोना रूपा तणां जी कांइ, थाल विशाल निहाल ।। ३४. आठ परात सोना तणी जी काइ, आठ रूपा री परात । आठ सोना रूपा तणी जी कांइ, पवर परात सुजात ।। ३५. आठ थासक सोना तणां जी काइ, आरीसा आकार । आठ थासक रूपा तणां जी काइ, सुवण्ण रूप अठ सार ।। ३६. आठ मल्लक सोना तणां जी काइ, आठ रूपा नां सार । आठ सोना रूपा तणां जी कांइ. सिरावला आकार ।। ३७. अष्ट पात्री सोना तणी जी कांइ, आठ रूपा री ताम । आठ सोना रूपा तणी जी कांड, एह रकेबी दाम ।। ३८. कूडछी चमचा सुवर्ण तणां जी काइ, अष्ट सुरूड़े घाट । आठ रूपा नां जाणज्यो जी काइ, सुवर्ण रूपक आठ॥ ३६. आठ तवा सोना तणां जी काइ, आठ रूपा नां उमेद । आठ सोना रूपा तणां जी कांइ, इमज तवी त्रिहुं भेद ।। ४०. आठ बाजोट सोना तणां जी कांइ, आठ रूपा रा बाजोट । आठ सोना रूपा तणां जी कांइ. मूल नहीं ज्यांमें खोट ।। ४१. आठ आसन सोना तणां जी काइ, आठ रूपा रा आसन्न । अष्ट सूवर्ण रूपा तणां जी काइ, दीधा होय प्रसन्न ।। ४२. आठ सोना नां कलशिया जी कांइ. आठ रूपा नां जेह । __आठ सोना रूपा तणां जी काइ, अथवा कचोला एह ।। ३७. अट्ट सोवण्णियाओ तलियाओ 'तलियाओ' त्ति पात्रीविशेषान् ३८. अट्ट सोवण्णियाओ कविचियाओ (वृ० ५० ५४८) ३६. अट्ठ सोवण्णिए अवएडए ___ 'अवएडए' त्ति तापिकाहस्तकान् (वृ० ५० ५४८) ४०. अट्ठ सोवण्णियाओ अवयक्काओ ४१. अट्ठ सोवण्णिए पायपीढए ४२. अट्ट सोवणियाओ भिसियाओ अट्र सोवणियाओ करोडियाओ ४५८ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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