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________________ ६. अट्ठ सिरीओ श्रीप्रभृतयः षड्देवताप्रतिमाः (वृ० ५० ५४७) १०. अट्ठ हिरीओ एवं धिईओ कित्तीओ ६. प्रतिमा षट देवी तणी जी काइ, आठ आठ कहिवाय । श्री देवी नीं शोभती जी काइ, प्रतिमा आठ शोभाय ।। १०. प्रतिमा ह्री देवी तणी जी काइ, आठज रूड़े घाट । इम अठ धृति देवी तणी जी काइ, कीत्ति देवी नी आठ ।। ११. आठ बुद्धि देवी तणी जी काइ, अठ लक्ष्मी नी जान । रत्न जड़ित ए छै सहु जी काइ, षट देवी नी पिछान ।। १२. अष्ट नंदादिक आपिया जी काइ, मंगल वस्तु अमोल । अन्य आचार्य इम कहै जी कांड, लोह ने आसन गोल ।। ११. बुद्धीओ लच्छीओ १२. अट्ठ नंदाई नन्दादीनि मंगलवस्तूनि अन्ये त्वाहुः–नन्दं-वृत्तं लोहासनं (वृ० ५० ५४७) १३. अट्ठ भद्दाई भद्र-शरासनं मूढक इति यत्प्रसिद्धं (वृ० ५० ५४७) १४. अट्ठतले तलप्पवरे सव्वरयणामए 'तले' त्ति तालवृक्षान् (वृ० ५० ५४७) १५. नियगवरभवणकेऊ अट्ठ झए झयप्पवरे १३. आठ भद्रासण आपिया जी काइ, प्रसिद्ध शरासन भद्र । तकिया करिने युक्त छै जी काइ, आसन एह अक्षुद्र ।। १४. अष्ट ताल वृक्ष आपिया जी काइ, तरुवर मांहि प्रधान । रत्न जड़ित ए पिण त्रिलं जी कांइ. महिपति दै सनमान ।। १५. प्रवर पोता नां घर विषे जी कांइ, केतु ध्वजा सुप्राय । अष्ट ध्वजा दीधी सह जी कांइ, प्रवर ध्वजा रै माय ।। १६. आठ गोकुल गायां तणां जी कांइ, गोकुल मांहि प्रधान । दश सहस्र गायां तणो जो कांइ, एक गोकल पहिछान ।। १७. नाटक आठ सुआपिया जी काइ, नाटक मांहि प्रधान । बत्तीस बद्ध नृत्य सहित छै जी काइ, इक-इक नाटक जान । १८. अष्ट तुरंग वर हय विषे जी काइ, सर्व रत्नमय दीस । रत्न माहे छै ते भणी जी कांद, एह भंडार सरीस ।। १६. अट्ठ वए वयप्पवरे दसगोसाहस्सिएणं वएणं 'वय' त्ति व्रजान्– गोकुलानि (वृ० ५० ५४७) १७. अट्ठ नाडगाइं नाडगप्पवराई बत्तीसइबद्धेणं नाडएणं १९. गज अठ पवर गज नैं विषे जी काइ, सर्व रत्नमय जान। रत्न तणां छै ते भणी जी काइ, एह भंडार समान ।। २०. यान शकट अठ आपिया जी काइ, पवर शकट में समृद्ध । अठ युग वर युग में विषे जी काइ, गोल देश में प्रसिद्ध ।। २१. कट आकारे सेवका' जी काइ, आच्छादित इम देख । संदमाणी जपान छ जी काइ, पुरुष प्रमाण विशेख ।। १८. अट्ठ आसे आसप्पवरे सव्वरयणामए सिरिघरपडिरूवए 'सिरिघरपडिरूवए' त्ति भाण्डागारतुल्यान् रत्नमयत्वात् (वृ०प०५४७) १६. अट्ट हत्थी हत्थिप्पवरे सव्वरयणामए सिरिघरपडि रूवए २०. अट्ट जाणाई जाणप्पवराई अट्ठ जुगाइं जुगप्पवराई 'जाणाई' ति शकटादीनि 'जुग्गाई' ति गोल्लविषय प्रसिद्धानि जम्पानानि (वृ० ५० ५४७) २१. एवं सिबियाओ एवं संदमाणीओ 'सिबियाओ' त्ति शिबिका:-कूटाकाराच्छादितजम्पानरूपाः ‘संदमाणियाओ' त्ति स्यन्दमानिकाः पुरुषप्रमाणाजम्पानविशेषानेव (व०प०५४७) २२. एवं गिल्लीओ थिल्लीओ 'गिल्लीओ' त्ति हस्तिन उपरि कोल्लराकाराः 'थिल्लीओ' त्ति लाटानां यानि अट्टपल्यानानि तान्यन्यविषयेषु थिल्लीओ अभिधीयन्तेऽतस्ताः (वृ० ५० ५४७) २३. अट्ठ वियडजाणाई वियडजाणप्पवराई २२. एम गिल्लि ते गज तणी जी काइ, अंबाबाड़ी जाण । अष्ट थिल्लि पिण इम दिय जी काइ, अश्व तणो ए पलाण । २३. वियड यान अठ आपिया जी काइ, वियड यान में प्रधान। चाल वृषभ नै हय विना जी, विज्ञान नां वश थी जान ।। २४. अठ रथ परिजाणक दिय जी कांइ, क्रीड़ प्रयोजन श्रिष्ट । कडि प्रमाण फलग वेदिका जी काइ, रथ संग्रामिक अष्ट ।। २४. अट्ठ रहे पारिजाणिए अट्ठ रहे संगामिए 'पारिजाणिए' त्ति परियानप्रयोजनाः पारियानिकास्तान् संगामिए' त्ति संग्रामप्रयोजनाः सांग्रामिकास्तान, तेषां च कटीप्रमाणा फलकवेदिका भवति । (वृ० ५० ५४७) १. शिविका श० ११, उ० ११७ ढाल २४४ ४५७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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