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________________ १५. बहु जन आगल एम परूपै, अहो देवानुप्रिया ! जी। ____ अतिशेष ज्ञान दर्शन मुझ उपनो, लहि पूर्ण संपति ताजी ।। १६. इम निश्च इण लोक विषे छ, द्वीपोदधि सात-सात । इण उपरत विच्छेद गया छ, अधिक नहीं आख्यात ।। १७. शिव राजऋषि पे वचन ए सुणनें, नगर हत्थिणापुर मांहि । सिंघाडक यावत महा पंथे, बहु लोक बदै माहोमांहि ।। १८. इम निश्चै हे देवानुप्रिया ! शिव राजऋपि इम भाखै । पूर्ण ज्ञान दर्शन मुझ उपनो, सात-सात द्वीपोदधि दाखै ॥ १६. सात द्वीप में सात समुद्र थी, अधिक नहीं लोक मांहि । किण रीते इम एह वारता, मन्ये वितर्के ताहि । २०. तिण काले तिण समय विषे, हिवे समवसरचा वर्द्धमान । परषद वीर वंदी सुण वाणी, पहुंती निज-निज स्थान ।। २१. तिण काले तिण समय विषे, जे भगवंत श्री महावीर ! तास जेष्ठ शिष्य अंतेवासी, इंद्रभूती गुण-हीर ॥ २२. भुजा शतक में पंचमुदेशे, जेम कह्यो तिम के'णो। आज्ञा ले गोचरी फिरतां नगर में, सांभलिया जन वेणो ।। १५. बहुजणस्स एवमाइवखइ जाव एवं परवेइ-अस्थि ___णं देवाणुप्पिया ! ममं अतिसेसं नाणदंसणे समुप्पन्ने १६. एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। (११।७२) १७. तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडगतिग जाव (सं० पा०) पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एबमाइक्खइ जाव परूवेइ१८. एवं खलु देवाणुप्पिया ! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव परूवेइ-अत्थि णं देवाणुप्पिया ! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा १६. तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य । से कहमेयं मन्ने एवं ? (श० १११७३) अत्र मन्येशब्दो वितर्कार्थः (वृ० ५० ५२०) २०. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसर्ट परिसा निग्गया । धम्मो कहिओ परिसा पडिगया। (श० १११७४) २१. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे २२. जहा वितियसए नियंठुद्देसए (भ० २।१०६-१०६) जाव घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजण सई निसामेइ 'बितियसए नियंठद्देसए' त्ति द्वितीयशते पञ्चमोद्देशक इत्यर्थः (वृ० ५० ५२०) २३,२४. बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइवखइ जाव एवं परूवेइ–एवं खलु देवाणुप्पिया ! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ-अत्थि णं देवाणुप्पिया ! तं चेव जाव (सं० पा०) वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य । से कहमेयं मन्ने एवं ? (श० १११७५) २५,२६. तए णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमलैं सोच्चा निसम्म जायसड्ढे जहा नियंठुद्देसए (भ० २।११०) जाव (सं० पा०) समणं भगवं महावीरं.. एवं वदासी''बहुजणसई निसामेमि-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–अत्थि णं देवाणुप्पिया ! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने एवं खलु अस्सि लोए सत्तदीवा सत्त समुद्दा, तेण पर वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य । (श० १११७६) २७. से कहमेयं भंते ! एवं ? २३. बह जन इम कहै जाव परूपं, शिवराजऋषी इम भाख । ऊपनो पूर्ण ज्ञान दर्शण मुझ, तं चेव पूर्ववत दाखै ।। २४. जाव सप्त-सप्त द्वीप समुद्र थी, अधिका नहीं लोक माय । किण रीते ए बात वितर्के, ए लोक तणी सुण वाय ॥ २५. गोतम में मन श्रद्धा प्रवर्ती, जेम निग्रंथ उद्देश । द्वितीय शतक - पंचमुद्देशे, आख्यो तेम कहेस ॥ २६. वीर कनै आय प्रश्न पूछे इम, जन करै पुर में बात । शिव राजऋषि कहै पूर्ण ज्ञान मुझ, लोक में द्वीपोदधि सात-सात ।। २७. ते किम हे भगवंत ! बात ए ? दोय सौ में तीसमी ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय-जश' मंगलमाल । श० ११, उ०६ढाल २३० ४०१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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