________________
१००. के हरकारे के पुकारे, केक पर ने नकारे । केइ पोता नौ नाम संभला केइ व्याखंई कर हुलसा ॥ बा०] हक्कारेति ते पर में विनय करि कला देखाई, फुस्कारेति से पुरकार
करे, थुक्कारेति ते थू-थू करें ।
१०१. केइ सुर करे सुर- सन्निपातो, सुर एकटा मिले विख्यातो । सुर उद्योत कर के देवा, केइ सुर उत्कलिका करेवा ॥
१०२. केइ देव कहं करता, प्रकृत देव हर्ष अति घरता । स्वेच्छा वचन कर जेहो, कोलाहल' वाल जेम करेहो ॥
१०३.
शब्द करता, के बेलुक्वेव विकरता। इम एक-एक आदरता केंद्र कार्य हूं आचरता ॥
1
१०४. केंद्र कमा उत्पल हस्त लेई, जान लक्ष पांवड़िया कहेई । वलि कलश ग्रही ऊभा केई, जाव धूप कडुच्छ कर लेई ॥
१०५. इष्ट तुष्ट पका जाव जेहो, हृदय विकसायमान करेहो । चिहुं दिशि सर्व धकी दोता, पुन परिधावति आयंता ॥ १०६. हि दंद्र तणां विणवार सामानिक चउरासी हजार। जाव आत्मरक्षक देवा, त्रिणलख सहस्र छतीस सुलेवा ॥
१०७. अन्य बहु सुर सुरी जाणो, एतो सुधर्मवासी पिछाणो । महाइंद्राभिषेक करंता, सिर आवर्तन करिनें वदंता ॥ हो म्हारा दक्षिण अर्ध लोक नां स्वामी !
चिरं जीव चिर नंद || ( ध्रुपदं )
१०८. जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! जय जय तूं हे नंद । भुवन समृद्धिकारी आनन्द पायो, भद्रकल्याण धावो अमंद ।। १०२. जय जय नंद ! भगतुझ धावो, अगजीत्या शत्रु जतीज्यो।
जीत्या पोता नो वर्ग पालीज्यो, जीत्या वर्ग में बसी ज्यो । ११०. सुरगण महेंद्र वणी पर तारागण में जिम चंद
असुर-समूह विषे जिम चमरेंद्र, जिम नाग विषे धरणें । १११. मनुष्य विषे जिम भरत चक्री पुन, बहु पत्योपम लगे । बहु सागरोपम लग स्वामी, स्वामी, सुखे-सुखे विचरेह ।।
Jain Education International
*लय : सुण चिरताली थारा लक्षण
+ लय हो म्हारा राजा रा गुरुदेव बाबाजी
१. फुक्कारे और थुक्कारे के स्थान पर रायपसेणइयं में क्रमश: थुक्कारेंति और थक्कारेंति पाठ है ।
२. यहां रामपसेणइयं की वृति में 'बोलकोलाहल' पाठ है।
१००. अपेगतिया हक्कारेति, अप्येवतिया बुक्कारेति, अप्पेगतिया यक्कारेति अप्पेमतिया 'साई साई नामाई सार्हेति' अच्येतियाबारिवि
( राय० सू० २८१ ) १०१. अप्पेगइया देवसण्णिवायं करेंति अप्पेगतिया देवज्जोय करेंति अप्पेगइया देववकलियं करेंति ।
1
( राव० सू० २६१ ) १०२. अप्पेइया देवकह कह करेति (राय० सू० २०१) प्राकृतानां देवानां प्रमोदभरवशतः स्वेच्छावचनबलकोलाहलो देवकहकहस्तं कुर्वन्ति ।
(राय० बु०प०२४९) १०३. अप्पेमतिया देवदुगं करेति । अप्पेगतिया - करेति । येा देवणिवा देज्जीपं देयिं देवकहकहगं देवदुदुहणं, चेलुक्य करेंति । (राय० सू० २०१)
१०४. अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया । अप्पेगतिया वंदणकल सहत्थगया जात्र अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगया । ( राय० सू० २८१ )
1
********
१०२. (सं० पा०) हिया सम्म समंता आहावंति परिधावति । (० ० २०१) १०६, १०७. तए णं तं... अण्णे य बहवे " देवा य देवीओ य महया महया इंदाभिसेगेणं अभिसिचंति, अभिचिता वयं यत्तेयं करपलपरिमहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी(राय० सू० २०२ )
१०८. जय जय नंदा ! जय जय भद्दा !
(राय० सू० २८२ ) १०६. जय जय नंदा ! भद्दं ते अजियं जिणाहि, जियं च पाहिजय साह (राम० सू० २८२ ) ११०. इंदो इव देवाणं, चंदो इव ताराणं, चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं (राय० सू० २०२ ) पतिओगाई बहुई ( राय० सू० २८२ )
१११. भरहो व मवाणं बहू सागरोपमाई
For Private & Personal Use Only
1
० १० उ० ६, ढाल २२४
३५५
www.jainelibrary.org