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२६. आभरण चंगेरी चंगी, एक सहस्र ने आठ सुरंगी।
मयूरपिच्छ पूंजणी नी चंगेरी, एक सहस्र नैं आठ भलेरी ।। २७. पुष्पपडल पिण एता, जाव लोमहत्थ पडल समेता।
एक सहस्र नैं आठ सछत्रो, चामर सहस्र ने आठ पवित्रो॥ २८. सगंध तेल नां डाबडा इतरा, जाव अंजन डाबडा जितरा।
एता कुडछा धूप उखेवा, सह विकु सेवग देवा ।। २६. स्वभाविक वैक्रिय नां तेही, कलशा यावत धूप कुडछा लेई।
सौधर्मावतंसक थी चाल्या, ए तो उत्कृष्ट गति थी हाल्या ॥
३०. ग्रहै क्षीरसमुद्र नों पाणी, तेहनां उत्पल कमल पिछाणी।
जाव लक्षपत्र' कमल लेई, आया पुष्करोदक दधि तेही ।।
३१. ग्रहै पुक्खरदधि जल सारो, कमल सहस्रपत्रादि उदारो।
आया समय-क्षेत्र रै मांह्यो, क्षेत्र भरत एरवत ताह्यो।
३२. तीर्थ मागध वर दाम प्रभास, सर उदक माटी ले तास।
ए लौकिक तीरथ होई, पिण धर्म तीर्थ नहिं कोई॥
२६. आभरणचंगेरीणं "लोमहत्थचंगेरीण
(राय० सू० २७६) २७. पुप्फपडलगाणं जाव (सं० पा०) लोमहत्थपडलगाणं
"छत्ताणं चामराणं (राय० सू० २७६) २८. तेल्लसमुग्गाणं जाव (सं० पा०) अंजणसमुग्गाणं.... अट्ठसहस्सं धूवकडुच्छ्याणं विउव्वंति
(राय० सू० २७६) २६. विउव्वित्ता ते साभाविए य वेउव्विए य कलसे य
जाव कडुच्छुए य गिण्हंति, गिण्हित्ता (सोहम्मवडेंसाओ) विमाणाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता ताए उक्किट्ठाए "देवगईए....."वीतिवयमाणा
(राय० सू०२७६) ३०. "खीरोयगं गिण्हंति, गिण्डित्ता जाई तत्थुप्पलाई
जाव (सं० पा०) सहस्सपत्ताई ताई गिण्हित्ता गिण्हंति जेणेव पुक्खरोदए समुद्दे तेणेव उवागच्छति
(राय० सू० २७६) ३१. उवागच्छित्ता पुक्खरोदयं गेण्हंति, गेण्हित्ता जाई
तत्थुप्पलाइं सहस्स पत्ताई ताई गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणे व समयखेत्ते जेणेव भरहेरवयाई वासाई
(राय० सू० २७६) ३२. जेणेव मागहवरदामपभासाई तित्थाई तेणेव उवा
गच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता तित्थमट्टियं गेण्हंति
(राय० सू०२७९) ३३. जेणेव गंग-सिंध-रत्ता-रत्तवईओ महानईओ तेणेव
उवागच्छति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति,
गेण्हित्ता उभोकलमट्टियं गेण्हंति, (राय० सू० २७६) ३४. जेणे व चुल्लहिमवंतसिहरिवासहरपब्वया तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता सव्वतूयरे
(राय० सू० २७६) ३५. सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सयोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति,
(राय० सू० २७६) ३६. जेणेव पउमपुंडरीयदहा तेणेव उवागच्छंति, उवाग
च्छित्ता दहोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई
(जाव) सहस्तपत्ताई ताई गेण्हंति (राय० सू० २७६) ३७,३८. जेणेव हेमवयएरणवयाई वासाई जेणेव रोहिय
रोहियंससुवण्णकूल-रुप्पकूलाओ महाणईओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेहंति,
गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गिण्हंति (राय० सू० २७६) ३६. जेणेव सदावाति-वियडावाति वट्टवेयड्ढाव्वया तेणेव
उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्व
गंधे सवमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्यए गिण्हंति ४७. जेणेव महाहिमवंत-रुप्पि-वासहरपब्बया सव्वतूयरे
सव्वपुप्फे "जेणेव महाप उम-पुंडरीयद्दहा दहोदर्ग... सहस्सपत्ताई ताई गेण्हंति (राय० सू०२७९)
जय गंगा सिंध नों पाणी, वली रत्ता रत्तवती नों जाणी।
बिहं तट नी माटी उदारो, ते पिण देव ग्रहै तिणवारो॥
३४. भरत सीमा चल हेमवंतो, एरवा सीमा सिखरी सोहंतो।
तिहां आया देव हुलासो, सर्व तूवर रस ले तासो।।
३५. सर्व फल सर्व गंधो, ग्रहै सर्व माल्य सखकंदो।
ओषधि सर्व उदारो, वलि ग्रहै सरिसव सविचारो।। ३६. हेमवंते पद्म द्रह ठीक, सिखरी पर्वत हे पुंडरीक ।
बिहं द्रह ना उदक ग्रहै आछा, जाव कमल सहस्रपत्र जाचा ।।
वि
३७. यूगल क्षेत्र हेमवंत वासो, तिहां नदी रोहिया रोहितासो।
क्षेत्र एरणवत में पिछाणी, सुवर्णकूला रूपकूला जाणी ।। ३८. ए पिण महानदी नों सारो, ग्रहै उदक धरी अति प्यारो।
विहं तट नी माटो आछी, ते पिण देव ग्रहै अति जाची ।। ३६. वृत्त वैसाढ्य ते विहं खेतो, सद्दावई वियडाबई तेथो।
सर्व तूवर रस पुप्फ गंध माला, ओपधि सरिसव ग्रहै सविशाला॥ शनिमहादेमवंत - रूपी, ग्रहै खाटो रस पुष्पादि अनुपा।
महापद्म द्रह महापुंडरीक, तेहनों उदक कमल लै सधीक ॥ १. 'रायपसेण इयं' मुल पाठ में यहां 'सहस्सपत्ताई' पाठ है । इस पाठ के पाठांतर
का यहां उल्लेख नहीं है। इस ढाल की अनेक गाथाओं में इसी प्रकार लक्षपत्र या लाख पांखुडिया शब्द प्रयुक्त है।
श० १०, उ०६, ढा० २२४ ३४६
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