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________________ २७. कल्याणकारी जाणने कांड, वलि जाणी मंगलीक | दंवत जाणी तेहने जी कांड, चित्त प्रसन्नकारीक ॥ २५. इम जाणी वह असुर ने कांड, देव देवी ने जाण । सेवा करिवा जोग छै जी कांइ, ए मग लोकिक पिछाण ॥ २१. तास पूज्य जाणी करी कांद, भोग भोगविवा तेह। मरतिको समर्थ नहीं जी कांइ, रीत अनादी एह || सोरठा ३०. पिण रायप्रश्रेणी' मोय, राज बेसया अवसरे । प्रतिमा दाढा ताय, पूजे सुरियाभ सुर ।। ३१. पहिला पछै पिछाण, पाठ हियाए आदि दे । ए मग लौकिक जाण, पिण पेच्चा परभव नहीं । ३२. निस्साए पहिचान, विघ्न तणी ए मोक्ष है। पच्छा शब्दे जाण, इह भव द्रव्य मंगलीक ए ॥ ३३. वांया थी वर्द्धमान, ते सुरियाभे देवता । पेच्या पाठ पिछान, परभव हियाए प्रमुख ३४. निस्साए पहिचान, ए परभव नीं मोक्ष है। पेच्चा शब्दे जाण, लोकोत्तर मारग कह्यो । ३५. संघक ने अधिकार, सूत्र भगवती' में को। लाय थकी धन बार, काठै जे ३६. पहिला पछैज होय, हियाए ए मोक्ष है। प्रतिमा पूजे सोय, तेह सरीखो ३७. निस्साए सुविचार, दालिद्र नीं पच्छा रख अनुसार इह भव हित सुख मोक्ष है ।। ३८. संपक दीक्षा लीप परलोके हित सुख प्रभु ए लोकोत्तर सीध, निस्सेसाए परलोक शिव ॥ ३६. लाय थकी धन बार, प्रतिमा दावा पूजतां । पेरुचा परभव ४१. बलि बहु ठामे ए साते लोकीक रे ॥ सुरियाभे जिन वांदिया | लोकोत्तर खाते इहां ॥ जिन-वांदण दीक्षा समय । पच्छा शब्द किहां नथी । सीध, जोय, पेच्चा परभव होय, ४२. प्रतिमा नें पूजत, पेच्चा वा परलोक नों। किहांइक पाठ न हुंत, न्याय विचारी लीजिये ॥ ४३. तिण सूं यां पिण ताय, दाढा नां कारण थकी । भोग भोगवै भोगवं नांव, कल्पस्थिति लोकीक मग ॥ ४४. त्रायत्रस गुरु-स्थान, इन्द्र विनय तेहनों करें 1 अभ्पुरथान पिछान ते मग लोकिक तेम ए ॥ ४५. मेघ- जमाली माय, चरण लियां सुत केश ले । ए मुझ दर्शण थाय, मोह कर्म नों उदय ए ॥ पच्छा पाठ विचार, ४०. खंधक दीक्षा दीक्षा लीय, १. सू० २६१ २. श० २।५२ ३३८ भगवती-जोड़ Jain Education International गावापती ।। कह्या । त्यां ॥ प्रमुख पाठ For Private & Personal Use Only २७. कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं २८. पज्जुवाणिजाओ भवंति । २६. से तेणट्ठेणं अज्जो ! एवं वुच्चइ–नो पभू चमरे अमुरिदे असुरकुमाररावा जाव (सं० पा० ) बिह तए । ( श० १०/६८ ) www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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