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गीतकछंद १. मम मन गगन तल नैं प्रचारी पार्श्व तरणी तेज थी।
अति क्रूर मोह तम दूर कर भरपूर हर्षित हेज थी। २. वर रीति नवमा शतक नीं कर जोड़ रचना मनरली। गुरुदेव में प्रसाद करि मुझ प्रवर ही आशा फली।
१,२. अस्मन्मनोव्योमतलप्रचारिणा;
श्रीपार्श्वसूर्यस्य विसप्पितेजसा । दुधृष्यसंमोहतमोऽपसारणाद् विभत्तमेवं नवमं शतं मया ॥
(वृ० १०.४६२)
.५७.३४, बाल २१६ ३०७
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