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ढाल : २१६
१. प्राग् हननमुक्तं, हननं] चोच्छ्वासादिवियोगोऽत
उच्छ्वासादिवक्तव्यतामाह- (वृ० ५० ४६१)
सोरठा १. पूर्वे वध अाख्यात, उश्वासादि वियोग ते । तिण सू हिव अवदात, उस्वासादिक नों कहं ।। *प्रभु वच प्यारा जी,
हे देव जिनेन्द्र दयाल विश्व उजारा जी ।। (ध्रुपदं) २. पृथ्वीकाय प्रभु ! पृथ्वीकाय प्रति, आणपाण ते लेवै।
उस्वास नै निःस्वास लेवै छै ? जिन कहै हंता वेवै ।।
२. पुढविक्काइए णं भंते ! पुढविक्कायं चेव आणमइ
वा? पाणमइ वा ? ऊससइ वा ? नीससइ वा ? हंता गोयमा ! ............
(श० ६/२५३)
सोरठा ३. इहां व्याख्या पूज्य कथित, जिण प्रकार कर वणस्सई। __ अन्य ऊपर अन्य स्थित, तेज खांचलै तेहनों। ४. पृथ्वी प्रमुख एम, अन्योऽन्य संबद्ध थी।
पृथ्वी प्रतेज तेम, करै उस्सासादिक तिको । ५. तिहां इक पृथ्वी काय, स्व संबद्ध अन्य पृथ्वी प्रति । ___ करै उस्सासज ताय, तिण ऊपर दृष्टांत ए॥ ६. पुरुष उदर घनसार, तेह कपूर स्वभाव प्रति ।
कर उस्सास तिवार, इम अपकायिक प्रमुख पिण ।। ७. 'पृथ्वीकाय प्रभु आउकाय प्रति, आणपाण ते लेवै ? उस्वास नै निःस्वास लेवं छै ? जिन कहै हंता वेवै ।।
३. इह पूज्यव्याख्या यथा वनस्पतिरन्यस्योपर्यन्यः स्थित
स्तत्तेजोग्रहणं करोति । (वृ० प० ४६२) ४. एवं पृथिवीकायिकादयोऽप्यन्योऽन्यसंबद्धत्वात्तत्तद्रूपं
प्राणापानादि कुर्वन्तीति (वृ० १० ४६२) ५. तत्रैक: पृथिवीकायिकोऽन्यं स्वसंबद्धं पृथिवीकायिकम्
अनिति-तद्रूपमुच्छ्वासं करोति (वृ० प० ४६२) ६. यथोदरस्थितकर्पूरः पुरुषः कर्पूरस्वभावमुच्छ्वासं
करोति, एवमप्कायादिकानिति (वृ० प० ४६२) ७. पुढविक्काइए णं भंते ! आउक्काइयं आणमइ वा
जाव नीससइ वा? हंता गोयमा ! पुढविक्काइए णं आउक्काइयं आणमइ
वा जाव नीससइ वा। ८-१०. एवं तेउक्काइयं, वाउक्काइयं, एवं वणस्सइकाइयं
(श० ६/२५४)
८. पृथ्वीकाय प्रभु ! तेउकाय प्रति, आणपाण ते लेवै ?
उस्वास नैं निःस्वास लेवै छै, जिन कहै हंता वेवै ।। ६. पृथ्वीकाय प्रभु ! वाउकाय प्रति, आणपाण ते लेवै ?
उस्वास नै निःस्वास लेवै छै, जिन कहै हंता वेवै॥ १०. पृथ्वीकाय प्रभु ! वनस्पति प्रति, आणपाण ते लेवै ?
उस्वास नैं निःस्वास लेवै छै? जिन कहै हंता वेवै ॥ ११, आउकाय प्रभु ! पृथ्वीकाय प्रति, आणपाण ते लेवै ?
उस्वास नैं निःस्वास लेवै छै? जिन कहै हंता बेवै ।।
११. आउक्काइए णं भंते ! पुढविक्काइय आणमइ वा
जाव नीससइ वा हंता गोयमा !.....
(श०६/२५५) १२-१५. आउक्काइए णं भंते ! आउक्काइय चेव आणमइ वा? एवं चेव । एवं तेउ-वाउ-वणस्सइकाइयं ।
(श० ६।२५६)
१२. आउकाय प्रभु ! आउकाय प्रति, आणपाण ते लेवै?
उस्वास नैं निःस्वास लेवै छ ? जिन कहै हंता वेवै॥ १३. आउकाय प्रभु ! तेउकाय प्रति, आणपाण ते लेवै ?
उस्वास नै निःस्वास लेवै छ ? जिन कहै हंता वेवै ।। १४. आउकाय प्रभु ! वाउकाय प्रति, आणपाण ते लेवै ?
उस्वास नै निःस्वास लेवै छै? जिन कहै हंता वेवै ॥
*लय : साचू बोलोजी
श०६ उ. ३४, ढाल २१६ ३०३
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